एन बीरेन सिंह (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: कुछ दिनों पूर्व मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने राज्य में 3 मई 2023 से शुरू हुई हिंसा से प्रभावित लोगों से माफी मांगी। उन्होंने सभी समुदायों से अपील की कि वे पिछली गलतियों को भूल जाएं और नए सिरे से जिंदगी शुरू करें। साथ ही मणिपुर को शांतिपूर्ण व समृद्ध बनाने की दिशा में सहयोग करें।
डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय से जारी हिंसा के बाद अब माफी मांगने की याद मुख्यमंत्री को आई। माफी तो प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को मांगनी चाहिए थी जो मणिपुर के मुद्दे पर बयान देना टालते रहे। प्रधानमंत्री मोदी ने देश-विदेश की यात्रा की लेकिन मणिपुर जाने के लिए समय नहीं निकाल पाए। इतने समय में उन्होंने मुख्यमंत्री से भी इस्तीफा देने को नहीं कहा। यदि मणिपुर में बीजेपी की बजाय किसी अन्य पार्टी की सरकार होती तो क्या उसे टिके रहने दिया जाता?
पिछले नवंबर महीने में मणिपुर के जिरबाम जिले में महिलाओं और बच्चों की नृशंस हत्या हुई। राज्य सरकार इस हिंसा को रोक नहीं पाई। इसे लेकर मणिपुर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा था कि यह कानून-व्यवस्था का मामला है जो राज्य सरकार के अधीन आता है। तथ्य यह है कि मणिपुर हिंसा की जांच एनआईए कर रही है जो कि केंद्रीय एजेंसी है।
एनआईए ऐसे मामलों की जांच करती है जहां सशस्त्र गुटों को विदेशी ताकतों की मदद हो और ऐसे गुट भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहते हों। मणिपुर की हिंसा में दोनों पक्ष मैतेई और कुकी शामिल हैं और दोनों को नुकसान भी उठाना पड़ा है। मुख्यमंत्री ने माफी तो मांग ली लेकिन आपसी समझौते की प्रक्रिया के लिए केवल हिंसा के शिकारों पर जोर नहीं डाला जा सकता।
जिन्होंने हिंसा की है उन्हें भी अपनी गलती मानकर समझौते के लिए आगे आना होगा। डर और दबाव के माहौल में माफी और समझौता कारगर नहीं हो सकते। जिरबाम की हिंसा के बाद उपजे जनरोष से निपटने के लिए राज्य सरकार ने सख्ती दिखाई थी।
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आतंक और विभाजनकारी राजनीति के बीच समझौते का रास्ता नहीं बन सकता। सर्वसमावेशक माहौल तैयार करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने होंगे। माफी दिल से मांगी जानी चाहिए। उसके दिखावे से काम नहीं चलेगा। उन कारणों से निपटना होगा जिनके चलते अविश्वास फैला और हिंसा भड़की। शांति स्थापना के बाद ही समृद्ध मणिपुर का सपना देखा जा सकता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा