झूठ के चैंपियन हैं ट्रंप (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, आपने फिल्म ‘बॉबी’ का गीत सुना होगा- झूठ बोले कौआ काटे, काले कौए से डरियो! हमें लगता है कि हर बार सफेद झूठ बोलनेवाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को काले कौए से जरा भी डर नहीं लगता.’ हमने कहा, ‘अमेरिका का प्रतीक चिन्ह विशालकाय ईगल या चील है।चील के सामने कौए की क्या बिसात! ट्रंप पूरी तरह बेधड़क हैं और चाहे जैसा दावा करते हैं।उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान से बातचीत करना और उन्हें पूर्ण युद्ध की कगार से वापस लाना उनकी बहुत बड़ी सफलता है लेकिन इसका श्रेय उन्हें कभी नहीं मिलेगा।’
हमने कहा, ‘यदि ट्रंप प्रशासन के पास इस बातचीत की रिकार्डिंग मौजूद है कि कैसे उन्होंने मोदी और शहबाज शरीफ को युद्ध रोकने के लिए राजी किया तो इस सबूत को नोबल पुरस्कार देनेवाली कमेटी को भेज दें।उन्हें तुरंत शांति का नोबल प्राइज मिल जाएगा जो कि महात्मा गांधी को भी नहीं मिल पाया था.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, कहावत है- झूठ के पैर नहीं होते।आपको याद होगा कि राजेश खन्ना की फिल्म आई थी- सच्चा-झूठा! उसका गीत था- दिल को देखो, चेहरा ना देखो, चेहरे ने लाखों को लूटा, दिल सच्चा और चेहरा झूठा! ट्रंप ने यह भी झूठ बोला कि भारत ने अमेरिका को जीरो टैरिफ का ऑफर दिया है मतलब अमेरिका से आनेवाले सामान पर भारत कोई टैक्स नहीं लगाएगा।बाद में उन्होंने कहा कि इस डील को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं है।’
हमने कहा, ‘झूठ बोलकर माहौल बनाना ट्रंप की नीति है।उन्होंने हिटलर के मंत्री गोयबल्स का यह कथन सुना होगा कि एक झूठ हजार बार बोलो तो वह सच हो जाता है.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमारे यहां कहा गया है- सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप अर्थात सच के बराबर कोई तपस्या नहीं है और झूठ बोलने से बड़ा पाप नहीं है।महात्मा गांधी की आत्मकथा का नाम है- ‘सत्य के प्रयोग’ लेकिन जब ट्रंप अपनी आत्मकथा लिखेंगे तो उसका नाम रखेंगे- झूठ के प्रयोग!’