जमानत मिलने के बाद भी परेशान है कैदी (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: जब यह कहा जाता है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है तो विचाराधीन कैदियों को कैद न रखते हुए जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए. सबसे बड़ी समस्या उन गरीबों की है जो छोटे-मोटे मामलों में पकड़े जाते हैं लेकिन कोर्ट में जमानत मिलने पर भी छूट नहीं पाते. इसकी वजह यह है कि ऐसे लोग जमानत की शर्तों को पूरा नहीं कर पाते. उनकी जमानत लेने और मुचलका भरने के लिए कोई आगे नहीं आता। जमानत के बावजूद पैसा नहीं होने के कारण देश के 24,000 से भी अधिक लोग अकारण जेल में हैं।
इन कैदियों में सबसे ज्यादा यूपी (6,158), मध्यप्रदेश (4,190), बिहार (3,345) हैं. इसके बाद महाराष्ट्र में 1,661, ओड़िशा में 1,214, केरल में 1,124, पंजाब-हरियाणा में 922, असम में 892, तमिलनाडु में 830 और कर्नाटक में 665 कैदी हैं. इन कैदियों के अपराध इतने संगीन नहीं है कि उन्हें बगैर सजा सुनाए लंबे समय तक कैद रखा जाए. जेल में रहकर ऐसे कैदी सुधरने की बजाय और बिगड़ जाते हैं. उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि वह कोई जमानतदार खड़ा नहीं कर पाए. उनके या रिश्तेदारों के पास इतने पैसे नहीं होते कि उनकी जमानत की रकम भर सकें. उन्हें जेल में रखकर सरकार का पैसा भी खर्च होता है।
इनमें कोई ऐसा भी कैदी हो सकता है जो बहुत मामूली कारण से पकड़ा गया. कहीं कोई मोर्चा या प्रदर्शन चल रहा हो और हंगामे के बीच वहां सड़क से गुजर रहा कोई व्यक्ति अचानक पकड़ लिया जाए. किसी झगड़े में वहां खड़ा तमाशबीन पकड़ में आ जाए. ऐसे मामलों में संबंधित व्यक्ति को बयान लेकर उसे छोड़ दिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता. गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है. गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है. कानून के शिकंजे में फंसे गरीब को अदालत नि:शुल्क वकील उपलब्ध कराती है. यदि मामले में दम नहीं है तो जमानत भी दी जाती है. जमानत की रकम और मुचलके की राशि भरना संभव नहीं होने पर अभियुक्त को जेल में ही रहना पड़ता है।
नवभारत विशेष से जुड़े सभी रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
यद्यपि इस मुद्दे को लेकर कानून है और अदालती फैसले की मिसाल भी है किंतु जानकारी की कमी से लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते. गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जमानत की शर्ते पूरी नहीं करने के बावजूद ऐसे बंदियों को रिहा किया जा सकता है जिन्होंने ऐसे मामले में दी जानेवाली कुल सजा का एक तिहाई समय जेल में काट लिया हो. इतने पर भी इस प्रावधान का लाभ उठाने के लिए निचली अदालत में अपील करनी होगी. यह आदेश दुष्कर्म और हत्या जैसे अपराधों पर लागू नहीं होता. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में भी इसे लेकर प्रावधान किए गए हैं लेकिन जानकारी न होने से विचाराधीन कैदी इसका लाभ नहीं उठा पाते।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा