रचनात्मक विनाश से आर्थिक विकास को गति (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: जोएल मोकिर, फिलिप अघियन और पीटर हाविट को रॉयल स्वीडिश अकादमी ऑफ साइंसेज ने 2025 के लिए अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। हालांकि इन तीनों ने ही अपना कार्य एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के आने से पहले किया, लेकिन उनका शोध प्रदर्शित करता है कि टेक के विशाल विघटन से लाभ अर्जित करने के लिए मानवता के नियमों का महत्व बहुत अधिक है। लेकिन क्या टेक का पागलपन बिना किसी योजना के है? अघियन व हाविट का मूल शोध 1992 में प्रकाशित हुआ था और मोकिर का क्रांतिकारी कार्य 1998 में। लेकिन उनका नोबल ऐसे समय में आया है जब एआई ने टेक्नोलॉजी की सीमाओं को अनजान व अज्ञात के दायरे में पहुंचा दिया है।
उनका शोध बताता है कि किस प्रकार टेक्नोलॉजी नए उत्पादों और उत्पादन विधियों को जन्म देती है जो पुराने उत्पादों का स्थान ले लेती हैं, जिसके परिणामस्वरूप जीवन स्तर, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। ऐसी प्रगति को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह भी आवश्यक है कि विकास के लिए खतरों के प्रति सचेत रहा जाए और उनका प्रतिकार किया जाए। मोकिर को इसलिए सम्मानित किया गया क्योंकि उन्होंने ‘तकनीकी प्रगति के जरिए निरंतर विकास के लिए शर्तों की पहचान की’, जबकि अघियन व हाविट को ‘रचनात्मक विनाश के जरिए निरंतर विकास की थ्योरी’ के लिए पुरस्कृत किया गया। ‘रचनात्मक विनाश’ (क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन) वाक्यांश की रचना ऑस्ट्रिया के अर्थशास्त्री जोसफ शुमपीटर ने की थी, जो निराशाजनक विज्ञान (डिस्मल साइंस) के क्षेत्र में करिश्माई हस्ती थे। अधियन का कहना है कि वैश्वीकरण व टैरिफ ‘विकास में बाधाएं’ हैं। बाजार जितना बड़ा होगा उतनी ही ज्यादा विचारों के आदान-प्रदान, टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। उनके अनुसार, ‘जो भी चीज खुलेपन के रास्ते में आती है, वह विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
इसलिए मुझे वर्तमान में काले बादल फैलते हुए नजर आ रहे हैं, जो व्यापार व खुलेपन के मार्ग में रुकावटें उत्पन्न करते जा रहे हैं।’ अघियन ने यूरोप से आग्रह किया है कि वह अमेरिका व चीन से सीखें, जिन्होंने प्रतिस्पर्धा व औद्योगिक नीति में तालमेल बैठाने के रास्ते तलाश कर लिए हैं। दूसरी ओर हाविट ने राष्ट्रपति ट्रंप की व्यापार नीतियों की कड़ी आलोचना की। उनके अनुसार, टैरिफ युद्ध शुरू करने से हर किसी के लिए बाजार का आकार कम हो जाता है। अमेरिका में कुछ निर्माण जॉब्स वापस लाना राजनीतिक दृष्टि से तो अच्छा हो सकता है, लेकिन आर्थिक नीति के लिए अच्छा नहीं है।’ ये तीनों विजेता पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने टेक्नोलॉजी व विकास के बीच संबंध का संज्ञान लिया है।
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फिन एफ किडलैंड और एडवर्ड सी प्रेसकोट को 2004 में नोबल पुरस्कार मिला था, क्योंकि उन्होंने टेक्नोलॉजी में परिवर्तन और अल्पकालीन व्यापार चक्रों के बीच संपर्क का अध्ययन किया था। 2025 के विजेताओं ने टेक्नोलॉजी की व्यवस्थित प्रगति में अपना विश्वास बरकरार रखा है जो कि शोध व विकास के प्रति समर्पण से स्वयं ही उपजता है, जहां संस्थागत फाइनेंस उनका समर्थन व प्रोत्साहन करता है, पेटेंट्स उनकी सुरक्षा करते हैं। हैं और नियम उन पर शासन करते हैं। टेक्नोलॉजी व मानवों का टकराव सोची हुई पटकथा के अनुरूप दुर्लभ ही चलता है। आज कोई भी यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि एआई अपनी खूबियों, खामियों व खतरों के बावजूद व्यवस्थित दिशा में चलेगी या नहीं। वास्तव में एआई के पागलपन में योजना का अभाव है। इस पृष्ठभूमि में वर्तमान नोबल विजेताओं की सोच महत्वपूर्ण हो जाती है।
अगर विचार संस्थाओं व समाजों से जन्म लेते हैं, अगर व्यापारी के पास यह मुक्त विकल्प है कि वह अपनी मर्जी से टेक्नोलॉजी का चयन करे ताकि समाज ‘वर्टिकल प्रोग्रेस’ देख सके, तो नियम मानवता के लिए अति आवश्यक हो जाते हैं। जोएल मोकिर, फिलिप अघियन और पीटर हाविट का कार्य शुमपीटर की 1940 की विस्तृत शैली को स्ट्रक्चर प्रदान करने का प्रयास करता है और साथ ही उससे अलग भी है।
लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा