
चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करने की चाल (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: चंडीगढ़ पंजाब व हरियाणा दोनों राज्यों की राजधानी है फिर भी उसके प्रशासन पर पंजाब की अधिक पकड़ है। पंजाब के राज्यपाल इस शहर के मुख्य प्रशासक रहते हैं। पंजाब के मुख्य सचिव पर चंडीगढ़ के नियमन की जिम्मेदारी रहती है। दो राज्यों की कैपिटल होने के बावजूद चंडीगढ़ को न राज्य का दर्जा है, न दिल्ली के समान उसकी अलग विधानसभा है। इस संवेदनशील शहर को पंजाब के अधिकार क्षेत्र से बाहर करने का प्रयास किया जा रहा है। इसलिए यह भी सवाल उठता है कि कहीं राजनीतिक कारणों से या स्वार्थ की वजह से मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की चाल न चली जाए! पंजाब का चंडीगढ़ से भावनात्मक नाता है।
इतने पर भी केंद्र सरकार चंडीगढ़ की प्रशासकीय व्यवस्था बदलने का प्रयास कर रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार रहना भी केंद्र को पसंद नहीं है। आगामी लोकसभा सत्र में इस संबंध में विधेयक लाया जा सकता है। 21 नवंबर को लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी पत्रक में इस संविधान संशोधन विधेयक का उल्लेख है। इसके अनुसार चंडीगढ़ का व्यवस्थापन पंजाब राज्य के नहीं बल्कि राष्ट्रपति के हाथों में सौंपा जाएगा। पंजाब के राज्यपाल पद को समाप्त कर वहां दिल्ली और पुडुचेरी के समान उपराज्यपाल रखा जा सकता है। आम आदमी पार्टी सहित पंजाब की सभी पार्टियों ने केंद्र सरकार के ऐसे किसी भी कदम का विरोध किया। बीजेपी की पंजाब इकाई भी इसके खिलाफ है। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन का अपना निर्णय स्थगित कर दिया है। इसी तरह पंजाब विश्वविद्यालय के अधिकारों में बाधा डालने के प्रयासों से भी केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा।
अब केंद्र का कहना है कि चंडीगढ़ के प्रशासन तंत्र को सुगम करने का उसका इरादा था। केंद्र को लगता है कि किसी राज्य, शहर का नाम बदलना उनके लिए बेहद आसान है। लोगों की भावना से उसे मतलब नहीं है। मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेस की बात करने वाली केंद्र सरकार राज्यों के बारे में अपने तरीके से निर्णय लेती है। जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग किया गया जबकि इसे लेकर कोई मांग नहीं थी। लद्दाख को राज्य का दर्जा नहीं दिया गया। शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया गया। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी खुद को अधिकारविहीन पा रहे हैं। जहां बीजेपी का शासन है वहां विशेष ध्यान दिया जा रहा है। दिल्ली को भी स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया जा सकता है क्योंकि अब वहां बीजेपी सत्ता में है।
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इसके पहले आम आदमी पार्टी की सरकार को एलजी के जरिए दबाया जाता रहा। जहां तक मुंबई की बात है, वह द्विभाषी बॉम्बे स्टेट की राजधानी थी। यदि संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन जोर न पकड़ता तो उस समय मुंबई या तो गुजरात को दे दी जाती या केंद्र सरकार उसे अपने कब्जे में ले लेती। मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है और वहां से मिलने वाले राजस्व को देखते हुए उसे केंद्रशासित बनाने का विचार हो सकता है। इस बारे में महाराष्ट्र को हमेशा सतर्क रहना होगा।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






