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नवभारत डेस्क: एक हैं तो सेफ हैं जैसे प्रेरणादायक नारे की अपने तरीके से व्याख्या करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे प्रधानमंत्री मोदी और नामी उद्योगपति गौतम अडानी से जोड़ दिया। चुनाव में हर तरह के नाटक या प्रहसन देखे जाते हैं। मुंबई की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल एक सेफ (तिजोरी) लेकर पहुंचे। एक हैं तो सेफ हैं नारे को धारावी घोटाले से जोड़ते हुए उन्होंने सेफ के भीतर से 2 पोस्टर निकाले। उनमें से एक में अडाणी और मोदी की तस्वीर थी जिसमें मोदी अडानी के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं।
दूसरे पोस्टर में धारावी पुनर्विकास प्रोजेक्ट का नक्शा दिखाया गया था। राहुल इतनी मोटी बात समझना नहीं चाहते कि हर सफल नेता के पीछे किसी उद्योगपति का हाथ होता है। ट्रंप का साथ एलन मस्क जैसे धनकुबेर ने जी-जान से दिया तो वह अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए।
धन के पहियों पर राजनीति की गाड़ी चलती है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 829 उम्मीदवार करोड़पति हैं जो सभी पार्टियों में हैं। इतिहास गवाह है कि महाराणा प्रताप को अकबर के खिलाफ अपनी सेना फिर से खड़ी करने के लिए भामाशाह ने खजाना खोल दिया था। जब देशवासी एक नहीं रहे तो सेफ भी नहीं रह पाए। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को यदि शक्तिशाली ग्वालियर राजघराना साथ देता तो 1857 में ही अंग्रेजों की पराजय हो जाती।
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इसके विपरीत ग्वालियर के शासक ने अंग्रेजों का साथ दिया। इतना ही नहीं ब्रिटिश राजघराने से प्रभावित होकर एक शासक ने अपना नाम जार्ज जिवाजीराव सिंधिया रख लिया था। मध्ययुग में यदि वीर राजपूत आपस में लड़ने की बजाय एक रहते तो मुगलों के हमले के सामने सेफ रहते।
भारत एक होकर सेफ न रहे इसलिए अंग्रेजों ने जाते-जाते हिंदुस्तान-पाकिस्तान का विभाजन करवाया। वाइसराय लार्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त को पाकिस्तान को आजादी देकर जिन्ना को कायदे आजम पद की शपथ दिलाई और दूसरे दिन भारत को आजादी दी। भारत की 650 से अधिक देसी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कराने का दुष्कर कार्य लौहपुरुष सरदार पटेल ने किया। वे जानते थे कि हम एक हैं तो सेफ हैं।
एक लकड़ी की टहनी को कोई भी तोड़ सकता है लेकिन उन टहनियों का गट्ठा बांधा तो कोई नहीं तोड़ सकता। इससे सीख मिलती है कि एक हैं तो सेफ हैं। यह बात अलग है कि आजकल राजनीतिक दलों का आपसी गठबंधन स्वार्थ की रस्सी से बंधा होता है।
कितने ही गठबंधन बेमेल नजर आते हैं लेकिन राजनीतिक जरूरतों के लिए किए जाते हैं क्योंकि एक पार्टी अकेले दम पर चुनाव में बहुमत नहीं पा सकती। चुनाव प्रचार में ऐसे भी लोग देखे गए जो उन नेताओं के खिलाफ बयान दे रहे हैं जिनका वे पहले अनुसरण करते थे। बागी और असंतुष्ट हर पार्टी में मिल जाएंगे। टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय खड़े हो गए। चुनाव राजनीतिक शतरंज बन कर रह गया है। इसमें कल के शत्रु आज के मित्र बन गए हैं। महाराष्ट्र का यह महाभारत निश्चित रूप से रोमांचक है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा






