वक्फ कानून रहेगा या जाएगा ?(फाइल फोटो)
हाल ही में अपने अलग-अलग आदेशों के जरिये 3 व्यक्तियों को जमानत प्रदान करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसीज व हाईकोट्र्स सहित अन्य निचली अदालतों को प्रमुखता से दो स्पष्ट संदेश दिए हैं- एक, पीएमएलए जैसे गंभीर मामलों में भी ‘बेल नियम, जेल अपवाद सिद्धांत लागू होता है। दूसरा यह कि आरोपी ने हिरासत में जो अन्य केस के बारे में वक्तव्य दिया है, वह साक्ष्य के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सहयोगी प्रेम प्रकाश को उसी केस में जिसमें सोरेन को जमानत दी थी बेल देते हुए इन बातों को न केवल दोहराया बल्कि एक तरह से उनके नजीर होने पर मोहर लगा दी है। इससे एक दिन पहले यानी 27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की कविता को दिल्ली शराब नीति मामले में जमानत दी थी और उससे कुछ समय पहले दिल्ली के पूर्व उप- मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत दी थी। इन तीनों मामलों का एक साथ अध्ययन करने पर सभी अदालतों व जांच एजेंसीज के लिए संदेश एकदम स्पष्ट है।
कविता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसीज को एक बार फिर फटकार लगाई और साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट को भी, जिसने पिछले 5 माह के दौरान कविता को 2 बार जमानत देने से इंकार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने जो यह जमानतें दी हैं और इनमें की गई प्रत्येक टिप्पणी उन सभी विचाराधीन आरोपियों के लिए उचित व न्यायपूर्ण प्रक्रिया की उम्मीद की किरण है, जो सख्त कानूनों के तहत जेल में हैं और बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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बीआरएस के प्रमुख केसी राव की बेटी कविता को ईडी ने 15 मार्च को गिरफ्तार किया था और फिर 11 अप्रैल को सीबीआई ने उन्हें तिहाड़ जेल से गिरफ्तार किया। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोनों केसों (भ्रष्टाचार व मनी लॉ्ड्रिरंग) में जमानत दी और दिल्ली हाईकोर्ट के एकल- न्यायाधीश खंडपीठ को फटकार लगायी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की गिरफ्तारी में ईडी व सीबीआई की, निष्पक्षता’ व ‘पिक एंड चूज’ दृष्टिकोण को भी कटघरे में खड़ा किया।
न्यायाधीश बीआर गवई व न्यायाधीश केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कविता को जमानत देते हुए कहा, ‘‘वह पांच माह से सलाखों के पीछे हैं। निकट भविष्य में ट्रायल का पूर्ण होना असंभव है। अंडरट्रायल कस्टडी सजा में नहीं बदलनी चाहिए। अगर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को कानून बनने दिया जायेगा तो किसी शिक्षित महिला को जमानत नहीं मिलेगी हाईकोर्ट ने कृत्रिम निर्णय तलाश किया है, जो कानून में नहीं है। हमने पाया है कि एकल-न्यायाधीश खंडपीठ स्वयं को पूर्णत: गलत दिशा में ले गई है। अभियोग पक्ष को निष्पक्ष होना चाहिए। जो व्यक्ति स्वयं को दोषी ठहराता है उसे गवाह बना लिया गया है। कल को आप जिसे चाहेंगे उसे पकड़ लेंगे और जिसे चाहेंगे उसे छोड़ देंगे? आप किसी भी आरोपी को पिक एंड चूज नहीं कर सकते। क्या यह निष्पक्षता है?’’
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पहले सिसोदिया के मामले में और नवीनतम घटना में कविता के मामले में जमानत का विरोध करने के लिए जांच एजेंसीज को अपनी जांच की गुणवत्ता व स्वरूप के लिए सुप्रीम कोर्ट की फटकार सुननी पड़ी है। एक केस के बाद दूसरे केस में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि विशेष कानूनों जैसे पीएमएलए, यूएपीए व पीएसए के तहत भी जमानत नियम है और, जेल अपवाद है और यह सिद्धांत अनुच्छेद 21 का हिस्सा है, जिसका संबंध जीवन व स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों से है।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को निश्चित तौर पर स्पष्ट किया कि यह सिद्धांत मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में भी लागू होता है और पीएमएलए प्रावधानों को इसके अनुरूप किया जाना चाहिए। पीएमएलए की धारा को सशर्त रिहाई देने के लिए उचित तौर पर हल्का किया जाना चाहिए। खंडपीठ ने इस मुद्दे को बिना किसी संदेह के हल करते हुए कहा कि पीएमएलए केसों में यह दो शर्तें पूरी होती हैं कि आरोपी प्रथम दृष्टया दोषी नहीं है और जमानत पर रिहा होने के बाद उसके द्वारा अपराध करने की संभावना नहीं है, तो उसे जमानत दे देनी चाहिए।
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अदालत की यह रूलिंग प्रेम प्रकाश को जमानत प्रदान करते हुए सामने आयी। प्रेम प्रकाश हेमंत सोरेन के सहयोगी हैं जिन्हें तथाकथित भूमि घोटाले में गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुच्छेद 21 उच्च संवैधानिक अधिकार है और इसलिए वैधानिक प्रावधानों को उसके अनुरूप होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पीएमएलए की धारा 45 केवल निश्चित शर्तों की संतुष्टि की बात कहती है। जबकि जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 21 की संक्षिप्त व्याख्या है।
अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमेशा नियम है और उससे वंचित किया जाना अपवाद है। वैध व उचित प्रक्रिया से ही किसी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे को भी सेटल किया। उसने कहा कि आरोपी ने हिरासत में रहते हुए अगर किसी अन्य मामले में कोई वक्तव्य दिया है, तो उसे साक्ष्य के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, प्रेम प्रकाश पहले ही झारखंड में स्टोन माइनिंग केस में बंद था, जब उसने ईडी को तथाकथित भूमि घोटाले में बयान दिया, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
लेख डॉ. अनिता राठौर द्वारा