गोदरेज प्रॉपर्टीज (सौजन्य-नवभारत)
Godrej Properties Limited: देश की नामी रियल एस्टेट कंपनी गोदरेज प्रॉपर्टीज लिमिटेड को एक बड़े कानूनी झटके का सामना करना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता वाले आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने विवादित परियोजना को लेकर गोदरेज प्रॉपर्टीज के खिलाफ फैसला सुनाते हुए इस कंपनी को न सिर्फ उसके 1,051.52 करोड़ के काउंटर-क्लेम को ‘बेहद बढ़ा-चढ़कर पेश किया गया और अप्रामाणिक’ बताते हुए खारिज कर दिया बल्कि उसे गोल्डब्रिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को 244 करोड़ रुपये का मुआवजा सालाना 12 प्रतिशत ब्याज समेत अदा करने का आदेश भी दिया है।
यह फैसला उस समय आया है जब उक्त दोनों कंपनियों के बीच सिटी के ‘आनंदम वर्ल्ड सिटी’ प्रोजेक्ट को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। बता दें कि वर्ष 2011 से 2015 के बीच गोदरेज प्रॉपर्टीज ने गोल्डब्रिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ कई समझौते किए थे। इनमें रेजिडेंशियल जोन-1, विला प्रोजेक्ट और रेजिडेंशियल जोन-2 के विकास, मार्केटिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर की जिम्मेदारी गोदरेज पर थी लेकिन ट्रिब्यूनल ने पाया कि गोदरेज ने ‘हर एक समझौते का गंभीर उल्लंघन’ किया है।
फैसले में साफ कहा गया कि कंपनी फ्लैट बेचने में नाकाम रही, जबकि ग्राहकों से शुल्क वसूला गया। विला प्रोजेक्ट अधूरा छोड़ दिया गया और मूलभूत सुविधाएं तक पूरी नहीं की गईं। रेजिडेंशियल जोन-2 परियोजना को पूरी तरह बीच में ही छोड़ दिया गया। ट्रिब्यूनल ने इन कार्यकलापों को ‘जिम्मेदारियों का सामूहिक परित्याग’ और ‘कॉन्ट्रैक्चुअल डीलिंग्स में गंभीर विश्वासघात’ करार दिया।
गोल्डब्रिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर ने शुरुआत में लगभग 1,366 करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा था, जबकि गोदरेज प्रॉपर्टीज ने इसके जवाब में 1,051.52 करोड़ रुपए के दावे पेश किए। दोनों पक्षों के दावों की विस्तृत पड़ताल के बाद ट्रिब्यूनल ने गोल्डब्रिक्स के पक्ष में फैसला दिया और गोदरेज को मुआवजे की रकम (244 करोड़ रुपए) ब्याज समेत चुकाने का आदेश दिया।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए एक अहम चेतावनी भारी नजीर साबित होगा, खासकर तब जब वे छोटे इंफ्रास्ट्रक्चर पार्टनर्स के साथ संयुक्त उपक्रम में उतरते हैं। एक वरिष्ठ आर्बिट्रेशन वकील ने कहा इस मुआवजे की भारी राशि और ऊंचे ब्याज दर की शर्त से ट्रिब्यूनल का इरादा साफ झलकता है कि जवाबदेही और अनुशासन से कोई समझौता नहीं हो सकता। इससे यह भी साफ होता है कि ट्रिब्यूनल चाहता है कि कंपनियां समय पर अपने समझौतों का पालन करें।
यह भी पढ़ें – ट्रंप प्रशासन की नई चाल, आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स; भारतीय IT कंपनियां के लिए बड़ा खतरा
इस फैसले ने रियल एस्टेट सेक्टर में हलचल पैदा कर दी है। विश्लेषकों का मानना है कि इससे गोदरेज प्रॉपर्टीज जैसी बड़ी कंपनी के लिए यह भुगतान वित्तीय रूप से घातक तो नहीं होगा लेकिन इससे कंपनी की प्रतिष्ठा और साख को गंभीर चोट पहुंचेगी। इस प्रकरण में दावेदार (गोल्डब्रिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा. लि.) की ओर से अधिवक्ता श्याम देवानी (देवानी एसोसिएट्स) तथा प्रतिवादी (गोदरेज प्रॉपर्टीज लि.) की ओर से अग्रवाल लॉ एसोसिएट्स, दिल्ली ने पैरवी की।