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नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, भारत में क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल, टेनिस, बैडमिंटन, वालीबाल, बास्केटबाल जैसे कितने ही खेल विदेश से आए और हमने उन्हें अपना लिया लेकिन अब हम अपने देश के खेल खो-खो को 2036 के ओलंपिक में शामिल कराने की कोशिश करेंगे। इसकी शुरूआत भारत ने खो-खो विश्वकप के आयोजन से कर दी है। बीजेपी नेता सुधांशु मित्तल खो-खो फेडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय खो-खो फेडरेशन के भी प्रमुख हैं सबसे पहले 1936 के बर्लिन ओलंपिक में खो-खो खेल का प्रदर्शन किया गया था। 2020 में 6 देशों ने खो-खो में भाग लिया और अब 2015 में 55 देशों में यह खेल लोकप्रिय हो गया है।’’
हमने कहा, ‘‘खो-खो में बहुत चपलता लगती है जैसे ही बैठे हुए खिलाड़ी की पीठ पर ‘खो’ कहते हुए हाथ लगा, उसे तुरंत दौड़ना पड़ता है। स्कूलों और खास तौर पर लड़कियों में खो-खो काफी लोकप्रिय रहा है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, खो-खो वर्ल्ड कप आयोजित करने के पहले काफी मेहनत की गई। इंटरनेशनल खो-खो फेडरेशन ने 16 देशों के 62 कोच को दिल्ली बुलाकर ट्रेनिंग दी गई फिर ये कोच अपने देश जाकर टीम तैयार करने लगे। आस्ट्रेलिया, पोलैंड, नीदरलैंड, नेपाल और ब्राजील की खो-खो टीम वर्ल्डकप में भाग ले रही हैं।’’
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हमने कहा, ‘‘राजनीति में भी खो-खो खेला जाता है नए उत्साही, ऊर्जावान नेता पार्टी के पुराने नेता को खो कहकर भगा देते हैं। किसी पुराने मुख्यमंत्री को ‘खो’ कहकर दिल्ली भगा दिया जाता है जहां वह केंद्रीय मंत्री बन जाता है। बुजुर्ग नेताओं को ‘खो’ कह देने पर वह सीधे परामर्शदाता मंडल में चले जाते हैं। शरद पवार ने सिर्फ 38 वर्ष की उम्र में वसंतदादा पाटिल को मुख्यमंत्री पद से ‘खो’ कर दिया था। जो नेता चपल रहता है, वह चैंपियन बन जाता है। कुछ नेता केंद्र और राज्य के 2 खंभों के बीच इधर से उधर भागते रहते हैं। राजनीति में दिशाहीनता हो सकती है लेकिन खो-खो में एक खिलाड़ी यदि उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठता है तो उसके बगल वाला दक्षिण दिशा की ओर। खो-खो कैसा होता है, खेलो तो जानो!’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा