टिकट नहीं मिला तो आया रोना (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, चुनाव की बेला में नेता के प्राण टिकट में अटके होते हैं। वह पार्टी से टिकट पाने की उसी तरह प्रतीक्षा करता है जैसे चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र में पड़नेवाली वर्षा की बूंद की बाट जोहता है। बिहार में ऐसी ही दिलचस्प घटना हुई। वहां राजद नेता मदन शाह ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं मिलने पर पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के आवास के बाहर अपना कुर्ता फाड़ डाला। इतना ही नहीं, वह किसी जिद्दी बच्चे के समान जमीन पर लेटकर जोर-जोर से रोने लगे। वहां मौजूद लोगों ने इस पूरे घटनाक्रम को अपने मोबाइल में रिकार्ड कर लिया जो कि सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।’
हमने कहा, ‘नेता को ऐसी नौटंकी करने या व्यर्थ का सीन क्रिएट करने की बजाय संयम रखना था। वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को भी नहीं मिलता। ऐसी लालसा क्यों रखना जिसके पूरी न होने पर इतना दुख हो!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, चुनाव में टिकटों का सौदा होता है। मदन शाह ने आरोप लगाया कि राजद ने उनसे टिकट के बदले पैसे मांगे थे। जब उन्होंने रकम देने से इनकार किया तो पार्टी ने उनका टिकट काटकर डा। संतोष कुशवाहा को दे दिया।
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मदन ने कहा कि मैं वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहा हूं लेकिन मुझे क्या मिला!’ हमने कहा, ‘यह बात हर कार्यकर्ता को समझनी चाहिए कि कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो! दाने-दाने पे लिखा है खानेवाले का नाम, लेनेवाले अनेक, देनेवाला एक राम!’ हमने कहा, ‘चुनाव पैसे का खेल है। पार्टी का इंजन दौलत के ईंधन से चलता है। कार्यकर्ताओं को समझना चाहिए कि उनकी किस्मत में निस्वार्थ सेवा और नेता के भाग्य में पौष्टिक मेवा रहता है। हर दल में यही हाल है। नेता मलाई खाएगा तो थोड़ी सी खुरचन कार्यकर्ता के लिए भी छोड़ देगा। यदि नेता टिकटों की दलाली करते हैं तो भी निष्ठावान कार्यकर्ता को नमकहलाली करनी चाहिए। टिकट नहीं तो कम से कम सेवा का पुण्य तो उसे जरूर मिलेगा!’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा