पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बड़े दुस्साहसी या एडवेंचरस हैं। पिछले किसी भी पीएम ने जो नहीं किया, वैसा साहसिक कारनामा वो कर दिखाते हैं। आप चाहे तो उन्हें खबरों का खिलाड़ी कह सकते हैं। वे पहाड़ की चोटी से लेकर समुद्र की तलहटी तक पहुंच जाते हैं। इतना ही नहीं वे मानसिक रूप से ध्यान लगाकर कलियुग से सीधे द्वापर युग तक जा पहुंचते हैं जिसे आप समयातीत यात्रा अथवा टाइम ट्रैवल भी मान सकते हैं। ’’
हमने कहा, ‘‘कहते हैं- जहां चाह वहां राह! रामचरित मानस में लिखा है- ‘जो इच्छा करिहौ मन माहीं, प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं! अपनी इच्छा को मोदी हमेशा पूरी करके रहते हैं। उन्हें समुद्र में डूबी हुई द्वारका देखने की अभिलाषा हुई तो सफेद हेलमेट और गेरूआ वस्त्र पहनकर उन्होंने गुजरात के पंचकुई के समुद्री तट पर गोता लगाया जिसे स्कूबा डाइविंग कहते हैं। नौसेना के गोताखोरों ने इस साहसिक अभियान में उनकी मदद की। ’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इस आस्था की डुबकी का आध्यात्मिक पक्ष भी देखिए। मोदी अपने साथ मोर पंख ले गए थे जिसे उन्होंने भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिया। वे साथ में बांसुरी भी ले जाते तो मोर मुकुट बंसीवाले भगवान उनसे और प्रसन्न हो जाते। मोदी ने बताया कि गहरे समुद्र में दिव्य और भव्य द्वारका की अनुभूति अविस्मरणीय बन गई है। मुझे कालातीत भक्ति के प्राचीन युग से जुड़ाव महसूस हुआ। जब मैंने इस प्राचीन नगरी का स्पर्श किया तो 21वीं सदी के भारत की भव्यता की तस्वीर आंखों के सामने घूम गई। समुद्र में द्वारका के दर्शन ने विकसित भारत के मेरे संकल्प को और मजबूत किया है। ’’
हमने कहा, ‘‘जब कंस के वध के बाद उसके ससुर मगध सम्राट जरासंघ ने बार-बार मथुरा पर आक्रमण किया तो मथुरावासियों की रक्षा के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को द्वारकापुरी बनाने का आदेश दिया जहां वे समस्त मथुरावासियों को लेकर चले गए। परकोटे से घिरी भव्यतम द्वारकापुरी का वर्णन श्रीमद भागवत में है। यह सुनियोजित नगरी थी जहां अट्टालिकाएं, महल, राजमार्ग, उद्यान, विशाल द्वार थे। यह अत्यंत सुरक्षित किले के समान निर्मित की गई थी। महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद द्वारका समुद्र में डूब गई। मरीन आर्कियालाजी (समुद्री पुरातत्व) के जरिए इस नगरी के अवशेषों को लगभग 60 वर्ष पूर्व प्रो। एसआर राव ने खोज निकाला था। समुद्र की गहराई में मोदी ने उसके दर्शन किए। इसीलिए कहा गया है- जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ!’’