पीएम नरेंद्र मोदी (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: इस बार भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन का केंद्र 2047 का विकसित भारत ही रहा। उनके भाषण की धुरी देश की आत्मनिर्भरता, सुरक्षा और एकता के इर्द-गिर्द घूमती रही। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में रक्षा, टेक्नोलॉजी, ऊर्जा, कृषि और सेमी-कंडक्टर जैसे क्षेत्रों में भारत के स्वालंबन की छलांग की घोषणा की।
पीएम मोदी ने विकसित भारत 2047 का ब्लू प्रिंट साझा करते हुए देशवासियों के सामने अगले 22 वर्षों में 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा और पाकिस्तान द्वारा नाभिकीय ब्लैकमेल या आतंकवाद के किसी भी रूप को स्वीकार न किए जाने की स्पष्ट चेतावनी भी दी।
उन्होंने कहा, ‘देशवासियों को आगामी दीपावली पर डबल खुशियां मिलने वाली हैं। जाहिर है यह महज दो महीने के भीतर हासिल किया जाने वाला लक्ष्य है। उन्होंने युवाओं के लिए विकसित भारत की नई रोजगार सृजन की जिस योजना की घोषणा की, वह भी तुरंत लागू हो जाने वाली है।
इस बार के 103 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘देश’ शब्द का इस्तेमाल 205 बार, ‘आत्मनिर्भर’ शब्द का 22 बार और ‘किसान शब्द का इस्तेमाल 27 बार किया। राष्ट्रवाद और स्वालंबन उनके भाषण के दो स्थाई मूल्य थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपने सार्वजनिक भाषणों में जिस तरह रक्षा और 1- राष्ट्रीय सुरक्षा को निर्णायक स्वर दिया है, वह स्वर लालकिले की प्राचीर से दिए गए भाषण में भी मौजूद था। उन्होंने भारत की अगली पीढ़ी की सुरक्षा के लिए स्वदेशी सुरक्षा प्रणाली ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ की घोषणा की। जिसे जानकार इजरायल के ‘आयरन डोम’ का भारतीय संस्करण कह रहे हैं।
आने वाले समय में सभी महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन, अस्पताल, विभिन्न राष्ट्रीय संस्थान और पवित्र धार्मिकस्थल भी, राष्ट्रपति भवन तथा प्रधानमंत्री आवास की तरह युद्ध और खतरे के समय सुरक्षा से लैस होंगे। इसके अलावा उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए सैनिकों के शौर्य को एक बार फिर से सलाम किया तथा पाकिस्तान को सख्त से सख्त संदेश दिया और बताया कि आतंकवाद और हिसा को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने फिर से सिंधु जल समझौते को लेकर कहा, ‘रक्त और पानी साथ-साथ नहीं बहेंगे।’ प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में डेमोग्राफिक मिशन और आंतरिक सुरक्षा पर भी जोर दिया। उन्होंने ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ की घोषणा की, जिसका उद्देश्य अवैध प्रवासियों पर नियंत्रण और संसाधनों को भारतीयों के लिए संरक्षित किए जाने की बात थी। इस बयान का अर्थ खासतौर पर पूर्वोत्तर राज्यों और बंगाल में बड़े पैमाने पर घुसपैठ के आरोपों को देखते हुए था।
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प्रधानमंत्री ने यूं तो अपने भाषण में देश के हर हिस्से का ध्यान खींचा। लेकिन पूर्वोत्तर राज्य और सीमावर्ती इलाकों पर सबसे अहम फोकस रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान की महत्ता पर बल दिया। उनके संबोधन में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों को खासतौर पर सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को जगह नहीं मिली। इस बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी छूट गए। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की उन्होंने विस्तार से चर्चा की और उनकी 125वीं जयंती के समय उन्हें एक महान संविधान सेवी बताया।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को विश्व के तकनीकी और वैज्ञानिक मानचित्र पर अग्रणी देश बनाने का युवाओं से आह्वान किया। भारत की वैश्विक भूमिका स्वनिर्णय से तय होगी। चाहे रक्षा साझेदारियों की बात हो, चाहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार वार्ताएं हों या जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्य हों। संदेश साफ था कि भारत सारे निर्णय बहुत सोच विचारकर और अपने हितों सहित वैश्विक भलाई के लिए लेता है।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत सिर्फ बातें नहीं कर रहा बल्कि वैश्विक नेतृत्व की जिम्मेदारियां लेने को भी तैयार है। रक्षा स्वालंबन के लिए उन्होंने जहां बड़े निवेश की बात की, वहीं जीएसटी सुधारों में राज्यों की सहमति और रोजगार योजनाओं के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाने की भी ठोस और व्यावहारिक पहल की। कुल मिलाकर देखें तो प्रधानमंत्री का संबोधन विकसित भारत के लिए एक स्पष्ट रोड मैप था जिसे चुनावी दस्तावेज भी कुछ लोग कह सकते हैं।
लेख-लोकमित्र गौतम के द्वारा