आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, परीक्षा सीजन चल रहा है लेकिन हमें समझ में नहीं आता कि परसेंटेज या प्रतिशत कैसे निकाला जाए. इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से परसेंटाइल शब्द भी चल पड़ा है. एक जमाना था जब 60 प्रतिशत नंबर लेकर प्रथम श्रेणी में पास होना और किसी विषय में 75 प्रतिशत अंक लेकर डिस्टिंक्शन पाना गौरवपूर्ण माना जाता था. अब तो 90 परसेंट से कम वालों की भी कोई कद्र नहीं है. विद्यार्थी पर दबाव रहता है कि ज्यादा से ज्यादा मार्क्स हासिल करे।
कुछ तो शतप्रतिशत तक नंबर ले आते हैं. क्या इसका मतलब यह है कि उनकी अक्ल किताब के लेखक के बराबर होती है?’ हमने कहा, ‘आपको मालूम होना चाहिए कि दुनिया का सारा व्यवहार परसेंटेज पर चलता है. अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इसमें माहिर हैं. उन्होंने अपने देश में आनेवाले इस्पात और अल्यूमीनियम पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया. इस वजह से विदेश से आनेवाला माल महंगा हो जाएगा और अमेरिका में स्टील व अल्यूमीनियम इंडस्ट्री को प्रोत्साहन मिलेगा. वहां अधिक लोगों को रोजगार हासिल होगा।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हम समझ गए कि परसेंटेज के गणित के भरोसे ट्रम्प अमेरिका को पुन: शक्तिशाली या ग्रेट बनाना चाहते हैं. हमें उनसे कुछ सीखना चाहिए.’ हमने कहा, ‘अपने देश के नेता और अधिकारी भी परसेंटेज निकालने में प्रवीण हैं. विकास का रथ परसेंटेज के पहियों पर चलता है. मंत्री, सांसद, विधायकों, अफसरों को जो ठेकेदार ज्यादा परसेंटेज देता है उसका टेंडर पास हो जाता है. सारा खेल दलाली और कमीशन का है. कितने ही अफसर अपने वेतन से ज्यादा तो कमीशन में कमा लेते हैं. परसेंटेज के लालच में एक सड़क साल में 4 बार खोदी और बनाई जाती है. कुछ योजनाएं सिर्फ कागज पर रहती हैं लेकिन उनकी निर्माण लागत का परसेंटेज पहले ही बांट लिया जाता है।’
नवभारत विशेष से संबंधित ख़बरों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज स्व. राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे तो उन्हें परसेंटेज का रहस्य मालूम था. उन्होंने कहा था कि हम केंद्र से गरीब के लिए 1 रुपया भेजते हैं लेकिन उसे सिर्फ 15 पैसे मिल पाते हैं मतलब यह कि 85 प्रतिशत रकम बीच के लोग खा जाते हैं.’ हमने कहा, ‘अब डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर या डीबीटी से रकम भेजी जाती है लेकिन फिर भी भ्रष्टाचारी लोग अपनी कमाई का रास्ता निकाल ही लेते हैं. नेताओं की राजनीति वोटों के परसेंटेज पर निर्भर रहती है. अगड़े-पिछड़े, जाति, भाषा सभी का परसेंटेज निकाल कर स्वार्थ पूरा किया जाता है।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा