भ्रष्टाचार की जांच, या 'बदले का पैंतरा। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मुसीबत कभी अकेले नहीं आती। जांच एजेंसियों के रडार पर सोनिया गांधी और राहुल ही नहीं बल्कि रॉबर्ट वाड्रा भी आ गए हैं। नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया व राहुल पर चार्जशीट है तो इस परिवार के दामाद रॉबर्ट पर हरियाणा भूमि सौदे से जुड़े मनीलांड्रिंग मामले में ईडी ने शिकंजा कसा है। यह सौदा 2007-08 का है। तब वाड्रा की स्काईलाइट हास्पिटैलिटी और डीएलएफ यूनिवर्सल लि. के बीच संदिग्ध भूमि सौदा हुआ था। 2012 में आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इसका म्यूटेशन रद्द कर दिया।
इस मुद्दे को बीजेपी ने राजनीतिक तौर पर भुनाया और 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के अवसर पर 6 पृष्ठों की ‘दामाद श्री’ पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें रॉबर्ट वाड्रा के हरियाणा और राजस्थान में किए गए जमीन सौदों का उल्लेख था। बीजेपी का आरोप था कि जब कांग्रेस केंद्र और राज्य दोनों में सत्तारूढ़ थी तब वाड्रा को सोनिया गांधी परिवार ने मदद दी थी। 2014 में बीजेपी हरियाणा में सत्तारूढ़ हुई। तब मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कहा कि वाड्रा की स्काईलाइट हास्पिटैलिटी द्वारा डीएलएफ को जमीन हस्तांतरण में कोई नियम उल्लंघन नहीं पाया गया। पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा कि यह राजनीति प्रेरित मामला है।
2007 में रॉबर्ट वाड्रा ने 1 लाख रुपए की पूंजी से स्काईलाइट हास्पिटैलिटी शुरू की। इस कंपनी ने फरवरी 2008 में ओंकारेश्वर प्रापर्टीज से 7.5 करोड़ रुपए में गुरुग्राम के मानेसर-शिकोहपुर में 3,531 एकड़ जमीन खरीदी। दूसरे दिन इसका म्यूटेशन हुआ और उस पर वाड्रा का स्वामित्व हो गया जबकि इस तरह की प्रक्रिया में कम से कम 3 माह लगते हैं। इसके एक माह बाद हरियाणा की हुड्डा सरकार ने उस भूमि पर आवास निर्माण प्रोजेक्ट बनाने के लिए स्काईलाइट हास्पिटैलिटी को अनुमति दे दी।
इससे उस जमीन की कीमत बहुत अधिक बढ़ गई। जून 2008 में डीएलएफ ने यह प्लॉट 58 करोड़ रुपए में लेने पर सहमति व्यक्त की। इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ ही महीनों में वाड्रा की प्रापर्टी की कीमत लगभग 700 प्रतिशत बढ़ गई। वाड्रा को यह रकम किस्तों में दी गई। 2012 में जमीन का ट्रांसफर डीएलएफ को हो गया। 2018 में हुड्डा, वाड्रा, डीएलएफ और ओंकारेश्वर प्रापर्टीज के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी, जालसाजी के आरोपों तथा भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत एफआईआर दाखिल की गई।
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अक्टूबर 2012 में महानिदेशक लैंड रिकॉर्ड अशोक खेमका ने इस भूखंड का म्यूटेशन रद्द कर दिया। इसके बाद हुड्डा सरकार ने खेमका का तबादला कर दिया। खेमका के स्थानांतरण के बाद हुड्डा सरकार ने भूमि सौदे की जांच के लिए 3 आईएएस अधिकारियों की समिति गठित की। अप्रैल 2013 में हरियाणा सरकार ने वाड्रा और डीएलएफ को क्लीन चिट दे दी तथा अशोक खेमका पर अधिकारों की सीमा से परे जाने का आरोप लगाया। खट्टर सरकार आने पर उसने मामले की जांच के लिए धींगरा आयोग की नियुक्ति की लेकिन उस आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई।
सूत्रों के अनुसार धींगरा आयोग ने हुड्डा के खिलाफ जांच की सिफारिश की थी। अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मामले की जांच कर रहा है। हरियाणा सरकार 2023 में हाईकोर्ट के सामने शपथपत्र पेश कर चुकी है कि स्काईलाइट द्वारा डीएलएफ को भूमि हस्तांतरण में किसी भी नियम या कानून का उल्लंघन नहीं हुआ। वजीराबाद के तहसीलदार की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह जमीन डीएलएफ यूनिवर्सल लि. के नाम पर नहीं पाई गई और जमीन अब भी एचएसवीपी/एचएसआईआईसी हरियाणा के नाम पर है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा