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नवभारत डेस्क: विगत 2 वर्षों के दौरान देश में हुए लगभग सभी चुनावों में विपक्षी पार्टियों ने मतदाता फ्रॉड का गंभीर आरोप लगाया है। इस पृष्ठभूमि में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 18 मार्च को दिल्ली में एक उच्चस्तरीय बैठक बुलायी, जिसमें केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन, यूआईडीएआई के सीईओ एस कृष्णन व चुनाव आयोग के तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हुए।
बैठक में आधार को एपिक (इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड) नंबर्स से जोड़ने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया और इस मुद्दे पर जल्द ही यूआईडीएआई (भारत का विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) से तकनीकी विचार-विमर्श किया जाएगा, इस पहल का किसी राजनीतिक दल ने विरोध तो नहीं किया है, लेकिन कांग्रेस ने कहा है कि चुनाव आयोग को सभी सियासी पार्टियों व स्टेकहोल्डर्स से बात करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘एक भी योग्य मतदाता को उसके मतप्रयोग अधिकार से वंचित न किए जाने के पर्याप्त सुरक्षा कवच हों।
यह जरूरी भी है, क्योंकि बुजुर्ग नागरिकों के अवसर उंगलियों के निशान लेना तकरीबन असंभव हो जाता है, जिससे उनका आधार कार्ड नहीं बन पाता है। मतदाता सूची में भी अक्सर पूरे मोहल्ले के नाम गायब मिलते हैं। यह भी देखने में आया है कि एक घर में अगर 5 मतदाता हैं, तो 3 के नाम मतदाता सूची से नदारद होते हैं। हाल ही में राजस्थान का एक मामला प्रकाश में आया था, जिसमें एक पते पर सैकड़ों मतदाता पंजीकृत थे और पत्रकार जब उस पते पर पहुंचे, तो वहां कोई घर था ही नहीं।
11 मार्च को तृणमूल कांग्रेस के 10 सदस्यों वाले प्रतिनिधि मंडल ने चुनाव आयोग से डुप्लीकेट एपिक नंबरों व क्लोन आधार काडों के आरोपों को लेकर मुलाकात की थी। बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 में निर्धारित हैं, जिसकी तैयारी अभी से आरंभ हो गई है। इस बीच तृणमूल को कुछ ऐसे एपिक नंबर मिले, जो अन्य राज्यों में भी आवंटित किए गए थे। साथ ही उसे क्लोन आधार कार्ड भी मिले। इन्हीं ‘साक्ष्यों’ को लेकर वह चुनाव आयोग से मिली थी। विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को संसद व उसके बाहर उठाया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में भी इस बात को उठाया था। इससे पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाता सूची में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगाए थे।
इन आरोपों पर चुनाव आयोग की सफाई यह है कि मतदाता सूची तैयार करने के लिए एरोनेट डिजिटल प्लेटफार्म के आने से पहले मैन्युअल गलतियों के कारण सूचियों में डुप्लीकेशन हुआ। उसने राजनीतिक दलों को यह आश्वासन भी दिया था कि समान एपिक नंबर वाले मतदाता, जो अन्य राज्यों में पंजीकृत हैं, वह फिर भी अपने अधिवास कागजात का प्रयोग करके मतदान कर सकते हैं।
चुनाव आयोग ने इस मुद्दे का हल तीन माह में करने का वायदा किया है। केंद्र सरकार ने संसद को सूचित किया है कि आधार वोटर आईडी को लिंक करना ‘प्रक्रिया संचालित’ एक्सरसाइज है और इस प्रस्तावित लिंकिंग के लिए कोई लक्ष्य या समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि जो लोग अपने आधार को अपने वोटर आईडी से लिंक नहीं कराएंगे, उनके नाम मतदाता सूची से हटाए नहीं जायेंगे।
जनप्रतिनिधि कानून 1950, जैसा कि चुनाव नियम (संशोधन) कानून 2021 द्वारा संशोधित किया गया है कि सेक्शन 23 के अनुसार, मतदाता पंजीकरण अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वह वर्तमान या भावी मतदाताओं से उनकी पहचान स्थापित करने के लिए उनके आधार नंबर स्वैच्छिक आधार पर मांग सकते हैं। अब चुनाव आयोग का कहना है कि एपिक को आधार से लिंक अनुच्छेद 326 के प्रावधानों के तहत किया जाएगा, जो कहता है कि मतदान के अधिकार केवल नागरिकों को ही दिए जा सकते हैं।
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आधार कार्ड से व्यक्ति की सिर्फ पहचान स्थापित होती है। लिंकिंग उन्हीं मामलों में की जाएगी, जिनमें मतदाता ने अपनी इच्छा से अपना आधार नंबर प्रेषित किया है। चुनाव आयोग ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उसने मतदाता सूचियों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में लगभग 66.23 करोड़ आधार काडौँ को अपलोड किया हुआ है। चुनाव आयोग 1 अगस्त 2022 से वर्तमान व भावी मतदाताओं के आधार नंबर ऐच्छिक आधार पर एकत्र करने का कार्यक्रम चलाए हुए है।
लेख- नरेन्द्र शर्मा के द्वारा