नागपुर की बेटी दिव्या दुनिया पर भारी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: अपनी लगन, निरंतरता, कठोर परिश्रम और हुनर के बलबूते नागपुर की बेटी दिव्या देशमुख ने फिडे विश्व महिला शतरंज प्रतियोगिता का विजेता पद हासिल कर इतिहास रच दिया। 19 वर्षीय दिव्या ने टाईब्रेकर में 38 वर्षीय कोनेरू हंपी को हराकर जीत दर्ज की। अंतिम दौर में प्रवेश करने के पूर्व हंपी और दिव्या दोनों को चीनी प्रतिस्पर्धियों से कड़ी चुनौती मिली थी। दोनों ही भारतीय खिलाड़ी फाइनल में पहुंची। 2024 में महिला शतरंज ओलंपियाड में भी दिव्या को स्वर्ण पदक मिला था। उस मुकाबले में हंपी ने भाग नहीं लिया था। बाटुमी (जार्जिया) में हुए फाइनल मुकाबले की ओर सभी की नजरें लगी हुई थीं।
क्लासिकल पद्धति से पहली बाजी गंवाने के बाद भी दिव्या ने हौसला नहीं हारा और टाइब्रेकर में हंपी को 2।5-1।5 से हराकर विश्व चैंपियन और ग्रैंड मास्टर का खिताब हासिल किया। दिव्या को शतरंज विरासत में नहीं मिली। उसके माता-पिता दोनों ही डाक्टर हैं लेकिन 5 वर्ष की उम्र में ही उसने शतरंज खेलना शुरू कर दिया। उसके प्रशिक्षक गुरप्रीतसिंह मरास ने 2007 से उसे प्रशिक्षण देना शुरू किया। लगभग साढ़े चार वर्ष के प्रशिक्षण के बाद वह उच्च स्तर पर खेलने के लिए तैयार हो गई। अपने संयम व तपस्या से वह आगे बढ़ती चली गई। जब उसने शिव छत्रपति क्रीड़ा पुरस्कार जीता तभी से सभी को आशा होने लगी थी कि दिव्या बहुत ऊंची मंजिल तय करेगी। हंपी जैसी अनुभवी खिलाड़ी को हराकर विश्वकप जीतना मामूली बात नहीं है।
हंपी ने पहली बाजी में वजीर देकर बड़ा बचाव किया सफेद मोहरों से खेलते हुए दिव्या ने विजय का एक मौका गंवाया और बाजी बराबरी पर समाप्त करने में हंपी को सफलता मिली। दूसरे तेज गति टाईब्रेकर मुकाबले में हंपी के पास सफेद मोहरे थे। तब दोनों खिलाड़ियों की स्थिति बराबरी पर थी। हंपी ने अपने स्वभाव के विपरीत अनावश्यक जोखिम लेकर प्यादा आगे बढ़ाने की गलती की। तेज गति के मुकाबले में खिलाड़ियों से काफी गलतियां हो जाती हैं। ऐसे में अंतिम चूक निर्णायक साबित होती है। हंपी यह मान रही थी कि मुकाबला बराबरी पर छूटेगा लेकिन दिव्या ने मन शांत रखते हुए विजय हासिल की। अपने आक्रामक खेल को जारी रखते हुए दिव्या अनुभवी हंपी के सामने डगमगाई नहीं। यह प्रतियोगिता जीतने पर दिव्या को 50,000 डॉलर का पुरस्कार व ग्रैंडमास्टर की टाइटल मिली। वह भारत की चौथी महिला है जिसे ग्रैंडमास्टर का खिताब मिला।
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इसके पहले कोनेरू हंपी, द्रोणावली हरिका और वैशाली को यह गौरव हासिल हुआ था। विश्व इतिहास में अब तक 43 महिला ग्रैंडमास्टर हुई हैं। हंपी, हरिका, टैन झोंगई व जू जायनर को इस प्रतियोगिता में दिव्या ने धूल चटाई। शतरंज में भारत का भविष्य उज्ज्वल है। एकाग्रता और जिद दिव्या की विशेषता है। इसी वर्ष विश्व के प्रथम क्रमांक की चीनी महिला खिलाड़ी हू यिफान को हराकर दिव्या विश्व विजेता बन सकती है। उसका खेल प्रेरणादायी है और अनेक लड़कियां उससे प्रेरणा ले सकती हैं।