(डिजाइन फोटो)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत चाहते तो पहले भी बीजेपी को खरी-खरी सुना सकते थे लेकिन उन्होंने चुनावी नतीजे आने और नई सरकार गठित होने तक संयम बरता और इसके बाद कड़े शब्दों में नसीहत दी। उन्होंने इसके लिए कार्यकर्ता प्रशिक्षण विकास वर्ग- द्वितीय के समापन समारोह का अवसर चुना। भागवत ने बीजेपी नेतृत्ववाली एनडीए सरकार को जमकर सुनाया और खास तौर पर बीजेपी नेताओं को निशाना बनाया जो अपने बेछूट बयानों से मर्यादा का उल्लंघन कर रहे थे। आशा है, संघ प्रमुख की दी हुई सीख के बाद बीजेपी सही ट्रैक पर लौट आएगी।
चुनाव प्रचार के दौरान बहुत ही स्तरहीन या घटिया किस्म की बयानबाजी की गई जो खबरों की सुर्खियों में देखी गई। नेताओं का अहंकार चरम सीमा पर था जिसमें विपक्ष के प्रति शत्रुता का भाव परिलक्षित हो रहा था। संघ प्रमुख ने नाम न लेते हुए कहा कि जो भी सेवक होता है, उसे अहंकारी नहीं होना चाहिए। इस तरह की मर्यादा का पालन होना चाहिए कि दूसरे को धक्का न लगे। जो सेवा करता है, उसे ध्यान रखना चाहिए कि उसे सिर्फ कर्म करना है, उसमें लिप्त नहीं हो जाना है। संघ प्रमुख के इस कथन से कोई भी समझ सकता है कि अहंकार किसके सिर चढ़कर बोल रहा था।
सरसंघचालक ने अपने घमंड में चूर और विपक्ष के प्रति असहिष्णु सत्ताधारियों को सीख दी कि वे विपक्ष की भी सुनें। सिक्के के 2 पहलुओं के समान पक्ष और विपक्ष होते हैं। सरकार को विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों पर भी विचार करना चाहिए। देश के मुद्दे उठाने के लिए जैसे सत्तारूढ़ दल का दृष्टिकोण है वैसे ही विपक्ष का भी नजरिया होता है। दोनों को मिलकर देश के उत्कर्ष के लिए काम करने की आवश्यकता है। जब पक्ष और विपक्ष मिलकर काम करेंगे तभी जनता की समस्याओं का हल निकाला जा सकेगा।
चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे को लताड़ने और समाज में कलह फैलानेवाले नेताओं को फटकारते हुए भागवत ने कहा कि समाज को बांटना अत्यंत अनुचित है। प्रचार में मनमुटाव इतना ज्यादा बढ़ाया गया जैसे कोई युद्ध चल रहा हो। देश में मत-मतांतर वाले लोगों को एक साथ लेकर चलना होगा। सभी लोगों को समझना होगा कि यह देश उनका है। आम सहमति से ही देश को चलाने की आवश्यकता है। संघ प्रमुख ने राष्ट्रीय एकात्मता और सामाजिक समरसता पर जोर दिया।
उल्लेखनीय है कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि बीजेपी अपने आप में समर्थ और शक्तिशाली है जिसे अब आरएसएस के सहारे की जरूरत नहीं रह गई। इस वक्तव्य में पितृ संगठन को नकारने और अहंकार का स्वर था। सभी जानते हैं कि बीजेपी की जड़ें आरएसएस में ही हैं। दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाए जाने पर अटलबिहारी वाजपेयी और आडवाणी जैसे दिग्गज नेताओं ने भी जनता पार्टी की सदस्यता और मंत्री पद छोड़कर संघ के साथ रहना मंजूर किया था।
नड्डा का बयान संघ को चुभनेवाला था और उसका कोई औचित्य भी नहीं था। संघ प्रमुख ने चुनाव के दौरान आरएसएस को बेवजह घसीटने पर तीखी नाराजगी जताई। उन्होंने सोशल मीडिया पर संघ को लेकर की गई टिप्पणियों पर भी प्रहार किया और कहा कि चुनाव में जो नतीजा आया वह जनता का दिया हुआ फैसला है। संघ सिर्फ जनता को जागृत करने का काम करता है। इससे ज्यादा संघ को चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। लोकतंत्र को सशक्त बनाए रखने के लिए चुनावी प्रक्रिया जरूरी है। लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा