महाराष्ट्र का बजट (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘आपने सुना होगा- रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाएं पर वचन न जाही. लोग जो वादा करते थे उसे हर कीमत पर निभाते थे. आजकल वादाखिलाफी होने लगी है. नेता लुभावने वादे कर वोट लेते हैं और सत्ता में आने पर पूरा नहीं करते.’ हमने कहा, ‘यह क्या कम है कि नेता वादों का सब्जबाग या सुंदर सपना दिखाते हैं. वचन देने में कोई कंजूसी नहीं करते. बोलने में थोड़े ही पैसे खर्च होते हैं. वचनेशु किं दरिद्रता! चुनावी वादे किसी स्टाम्प पेपर पर नहीं किए जाते इसलिए उन्हें पूरा करने की बाध्यता या अनिवार्यता नहीं है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, लाडकी बहिण का मानधन 1500 रुपए से बढ़ाकर 2,100 रुपए करने का वादा नहीं निभाया गया. महाराष्ट्र सरकार इस तरह यू-टर्न क्यों ले लेती है?’ हमने कहा, ‘घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने जैसी हालत है. खर्च ज्यादा और कमाई कम है. राजस्व में कमी बनी हुई है. राज्य पर 7 लाख 80 हजार करोड़ रुपए तक कर्ज लेने की मर्यादा है. इसलिए कल तक जनता को कुछ देनेवाली सरकार अब टैक्स व ड्यूटी बढ़ाकर वसूल करनेवाली सरकार बन गई है. स्टाम्प ड्यूटी बढ़ाने से घर खरीदना महंगा हो जाएगा।
पूरक दस्तावेजों पर 100 की बजाय 500 रुपए का स्टाम्प पेपर जरूरी होगा. किसानों की कर्जमाफी पर भी वित्त मंत्री मौन रहे.’ पड़ोसी ने कहा, ‘समझदार लोग प्राय: मौन साध लेते हैं. महात्मा गांधी ने कहा था- मौन में ईश्वर बसता है. हमने पर्यावरण की रक्षा के लिए ई-कार खरीदने का विचार किया था लेकिन उस पर भी 6 प्रतिशत टैक्स लगा दिया गया.’ हमने कहा, ‘वित्तमंत्री की मजबूरी को समझिए. उन्हें राज्य की खाली तिजोरी फिर से भरनी है।
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इसके लिए या तो टैक्स बढ़ाओ या फिर कॉस्ट कटिंग के जरिए खर्च कम करो. अमेरिका में भी प्रशासन में सक्षमता लाने के लिए बड़ी तादाद में कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है. अपने यहां अनुत्पादक खर्च रोका नहीं जाता.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, वित्तमंत्री की तारीफ कीजिए क्योंकि उन्होंने 2030 तक के लिए रोडमैप पेश किया है और कहा है कि महाराष्ट्र अब रुकेगा नहीं, उनके 5 वर्ष के विजन डाक्युमेंट को पढि़ए और सुनहरे भविष्य के सपनों में खो जाइए. ऐसा बिल्कुल मत कहिए कि जो वादा किया है, निभाना पड़ेगा।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा