(डिजाइन फोटो)
विधानसभा चुनाव जीतने के लिए महायुति सरकार विभिन्न वर्गों को खुश करने में लगी है। यह एक प्रकार का प्रलोभन या तुष्टिकरण है ताकि मतदाताओं का भरपूर सहयोग मिले। आचार संहिता लागू होने के पूर्व विभिन्न बैठकों में सरकार ने वोटों का गणित ध्यान में रखते हुए अनेक निर्णय लिए।
हाल ही में सुनार समाज के लिए नरहरि सुनार के नाम पर स्वतंत्र आर्थिक विकास महामंडल, आर्य वैश्य समाज के लिए श्री वासवी कन्यका मंडल, महाज्योति संस्था के आधार पर बंजारा समाज के लिए वनाटी (वसंतराव नाईक संशोधन व प्रशिक्षण संस्था) स्थापित करने का निर्णय लिया गया।
इसके पूर्व मंत्रिमंडल की बैठक में भगवान परशुराम के नाम पर ब्राम्हण समाज के लिए, महाराणा प्रताप के नाम पर राजपूत समाज के लिए महामंडल गठित करने का निर्णय लिया गया। इतना ही नहीं, सरपंच, उपसरपंच, ग्रामसेवक, कोतवाल, आंगनवाडी सेविका, ग्राम रोजगार सेवक, होमगार्ड आदि को खुश करने के लिए सरकार ने कदम उठाए हैं।
मंत्रिमंडल की 2 बैठकों में लगभग 74 निर्णय लिए गए। जाहिर है कि वोट पर निगाह रखते हुए यह फैसले लिए गए। मुख्यमंत्री लाड़की बहीण योजना इस समय देश भर में चर्चित है जिसके प्रचार व लागू करने की दिशा में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे तथा दोनों उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस व अजीत पवार के अलावा महायुति की तीनों पार्टियों के नेता लगातार जुटे हुए हैं।
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मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री रहते समय शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहना योजना चलाई थी जिससे लोकसभा चुनाव में प्रदेश की पूरी 29 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। महाराष्ट्र की ‘लाड़की बहीण’ योजना भी उसी तर्ज पर है। गाय को राज्यमाता-गोमाता दर्जा देकर देसी गाय पालनेवालों को प्रतिदिन 50 रुपए अर्थात हर माह 1500 रुपए की मदद की जाएगी।
देखना है कि मतदाताओं के साथ ही गोमाता का आशीर्वाद पाने का उपक्रम कितना सफल होता है। बुजुर्ग पत्रकारों की सम्मान राशि वर्तमान 11,000 रुपए से बढ़ाकर 20,000 रुपए करने का प्रस्ताव था लेकिन उसका जीआर अभी तक जारी नहीं हुआ। महायुति सरकार के लुभावने कदमों का विपक्ष कैसे मुकाबला कर पाएगा?
दूसरी बात यह भी है कि इतनी योजनाओं की घोषणा तो कर दी गई लेकिन इनमें से कितनी जमीन पर उतरेंगी। इनके लिए आर्थिक प्रावधान कैसे किया जाएगा। क्या इसके लिए सरकार को कर्ज लेना होगा? यह बाद की बातें हैं अभी तो चुनावी रणक्षेत्र के लिए महायुति ने कमर कस ली है। लाड़की बहीण योजना को वह अपना तुरुप का पत्ता मानती है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा