भारतीय वायुसेना को बनना होगा स्पेस फोर्स (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: रक्षा मंत्रालय को इंडियन एयरफोर्स का नाम बदलकर इंडियन एयर एंड स्पेस फोर्स रखने का प्रस्ताव मिले काफी समय हो चुका है. अब, जब अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत मजबूत अंतरिक्ष सैन्य ताकत बनने की ओर बढ़ चला है, तो न सिर्फ इस ओर उसे अपनी रफ्तार तेज करनी होगी, बल्कि नाम बदलने के प्रस्ताव को भी जल्द से जल्द लागू कर देना चाहिये. बीते दिनों संसद की एक स्थायी समिति ने वायुसेना को ताकतवर अंतरिक्ष बल में बदलने की बात शामिल कर ली है।
जनवरी में हुए डिफसेट सम्मेलन के दौरान तय हुआ कि भारत के रक्षा बल विभिन्न कक्षाओं में अंतरिक्ष यानों और डेटा रिले प्रणालियों को मिलाकर एक एकीकृत उपग्रह संचार ग्रिड बनायेंगे. सेना वैसे भी कम्युनिकेशन, मौसम पूर्वानुमान, निगरानी और टोह लेने, ट्रेकिंग करने, रियल टाइम सर्विलांस जैसे मिलिट्री ऑपरेशन में कार्टासेट, नेमेसिस, सोर्ससेट जैसे कई सैन्य और गैर सैन्य उपग्रहों का उपयोग कर रही है पर निकट भविष्य में कई उपग्रह महज सैन्य सेवाओं के लिये ही प्रक्षेपित होंगे. अगले 8 वर्षों में 100 ऐसे उपग्रहों के प्रक्षेपण की योजना भी उजागर हो चुकी है, जो सैन्य उपयोग के होंगे. सेना की क्षमताओं को मजबूत करने के लिये बीते नवंबर में सेना ने दूसरे अंतरिक्ष युद्ध का अभ्यास किया।
सेना अब पाकिस्तान, चीन की जमीनी चुनौतियों से शक्ति’ ऊपर उठकर बेहतरीन ‘वायु से ‘मजबूत एयरोस्पेस पावर’ बनने और अंतरिक्ष युद्ध की व्यापक और पुख्ता तैयारी की ओर तेजी से अग्रसर है. अंतरिक्ष के करीब 20 से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर धरती की निचली कक्षा में लड़े जाने वाले युद्ध में, जो पक्ष स्पेस में शक्तिशाली होगा, जमीन पर वही जीतेगा. हमने इसे बहुत पहले समझ लिया था. दो दशक पहले भारतीय सेना ने इस बाबत अपनी शुरुआत कर दी थी, यहां तक कि उसने अमेरिका से भी पहले डिफेंस स्पेस एजेंसी गठित कर ली थी. अमेरिका अंतरिक्षीय सैन्य ताकत में बहुत आगे है. हमें इस ओर अब तेज चाल से चलने की आवश्यकता है. सरकार भी इस बात को समझती है कि स्पेस में अपनी आक्रमण तथा बचाव दोनों ताकतों को समय रहते बढ़ाना होगा।
अमेरिका, रूस और चीन अपनी-अपनी स्पेस फोर्स की तैयारियों में काफी आगे निकल चुके हैं. तीनों अंतरिक्ष में उच्चस्तर की एंटी सैटेलाइट क्षमताओं से लैस हैं. अंतरिक्ष युद्ध में काम आने वाले हथियार प्रणाली भी वे बना रहे हैं. इनके पास अपलिंक और डाउनलिंक जैसी जमीन से चलाई जाने वाली अंतरिक्ष निरोधक व्यवस्थाओं को जाम करने की सुविधा भी है. 2015 में चीन ने 2016 में रूस ने तथा 2018 की आखिर में अमेरिका ने अपनी एरोस्पेस फोर्स बना लिया था। ऑस्ट्रेलिया ने भी 2022 में रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयरफोर्स मुख्यालय के भीतर एक ‘स्पेस डिविजन’ बना लिया. ब्रिटेन भी अपनी स्पेस कमांड की स्थापना कर चुका है।
फ्रांस के पास भी अपना एयरोस्पेस विंग है. जापान ने अपने सैटेलाइट को कचरे और विरोधी गतिविधियों से बचाने के लिए अंतरिक्ष स्क्वॉड्रन बना ली है. भारतीय वायुसेना को स्पेस फोर्स का नाम देने के साथ ही इसरो, डीएआरडीओ जैसे सरकारी तथा एयरोस्पेस से जुड़ी निजी कंपनियों को शामिल कर, एक संयुक्त अंतरिक्ष कमान का गठन करना चाहिये।
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वहीं एयर और स्पेस के बीच में सहज तरीके से तालमेल बिठाते हुये अपना काम चुस्ती से करना होगा। अंतरिक्ष के सैन्य उपयोग के प्रतिबंधित होने के चलते अधिकारियों को स्पेस संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानून की जानकारी और प्रशिक्षण देने के लिये हैदराबाद में सेंटर फॉर एयर वॉरियर्स के अलावा भी प्रशिक्षण केंद्र बनाने होंगे. अमेरिका के पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग सेवा के लिये जीपीएस के भारतीय संस्करण नाविक का कवरेज विस्तार, क्षमता, सटीकता बढ़ानी होगी।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा