क्या सुधरेंगे कनाडा और भारत के रिश्ते (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: कनाडा में मार्क कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद की जाती है कि वह अपने पूर्ववर्ती पीएम जस्टिन ट्रूडो के समान भारत से टकराव के रास्ते पर नहीं चलेंगे क्योंकि ऐसा करना राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से कनाडा के लिए फायदेमंद नहीं है. दोनों देशों की जनता भी नहीं चाहती कि द्विपक्षीय संबंध बिगड़ें. यद्यपि गत वर्ष ट्रूडो की विदेश नीति की वजह से भारत-कनाडा कूटनीतिक रिश्ते बुरी तरह प्रभावित हुए लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ता चला गया।
भारत से कनाडा जानेवालों की तादाद में भी कमी नहीं आई. कार्नी अर्थशास्त्री हैं इसलिए वह विदेश नीति में उलझने की बजाय सबसे पहले कनाडा की अर्थव्यवस्था की चिंता करेंगे. कनाडा इस समय अमेरिका के दबाव से गुजर रहा है. राष्ट्रपति ट्रंप ने टैरिफ बढ़ाने की धमकी देने के अलावा कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की मंशा जाहिर की है. इसे देखते हुए मार्क कार्नी को भारत से आर्थिक संबंध बेहतर बनाते हुए व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) पर चर्चा आगे बढ़ानी होगी. दोनों देशों के बीच कृषि तकनीक, ऊर्जा और फर्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने की बड़ी संभावना है।
2022 के भारत-प्रशांत नीति दस्तावेज में कनाडा ने भारत को अपना विशिष्ट व्यापार सहयोगी बताया था. दोनों देशों के संबंधों में बिगाड़ आने की प्रमुख वजह ट्रूडो की भारत विरोधी खालिस्तान लॉबी से निकटता थी. खालिस्तानी नेता जगमीतसिंह की नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन पर ट्रूडो की सरकार टिकी हुई थी. किसी भी देश की विदेश नीति सहसा नहीं बदलती इसलिए कनाडा में सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी का रुख भी भारत के प्रति एकदम नहीं बदलेगा फिर भी संबंधों में सुधार की नए सिरे से शुरूआत हो सकती है।
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संभवत: दोनों देश फिर से एक-दूसरे के यहां हाईकमिश्नर की बहाली पर विचार करें. कनाडा में इसी वर्ष अक्टूबर में चुनाव होनेवाले हैं. प्रधानमंत्री कार्नी शायद इसके पहले भी चुनाव करा सकते हैं उन्होंने अमेरिका के दबाव से निपटने के लिए 28 अप्रैल को चुनाव कराने की इच्छा व्यक्त की है ताकि उन्हें व्यापक जनादेश मिल सके. उन्होंने कहा कि वह समान सोच वाले देशों जिनमें भारत शामिल है, व्यापारिक रिश्ते सुधारना चाहते हैं. पीएम पद संभालने के बाद मार्क कार्नी अमेरिका की बजाय पहले फ्रांस और फिर ब्रिटेन गए. यदि कार्नी की पार्टी चुनाव हार भी जाए तो भी कनाडा के अन्य नेता भारत से संबंध सुधार के इच्छुक हैं।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा