महाराष्ट्र के विधान भवन में मारपीट (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: हमारे लोकतंत्र की गरिमा को कलंकित करने वालों को शर्म से डूब मरना चाहिए। महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील व गौरवपूर्ण राज्य में जब 72 से ज्यादा अधिकारियों, पूर्व व वर्तमान मंत्री के हनी ट्रैप में फंसने और विधान भवन के प्रवेश द्वार पर बीजेपी-राकां समर्थकों की मारपीट व गाली-गलौज की खबर आती है तो मन खिन्न हो उठता है। देश को आजादी मिले लगभग 78 वर्ष हो रहे हैं लेकिन क्या हमारे त्यागी-बलिदानी स्वाधीनता सेनानियों ने ऐसे निकृष्ट माहौल की कल्पना की थी जिसमें नैतिकता व आदर्श दम तोड़ते नजर आएंगे? विधान भवन की लॉबी में मछली बाजार जैसा दृश्य दिखाई देगा! जो भी हुआ, वह अत्यंत अशोभनीय है।
राजनेताओं से लेकर उच्चाधिकारियों की अय्याशी के सबूत पेन ड्राइव में होने का दावा करते हुए कांग्रेस विधायक नाना पटोले ने विधानसभा में आरोप लगाया कि नाशिक, ठाणे और मंत्रालय हनी ट्रैप के अड्डे बन गए हैं। विधान परिषद में भी विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि हनी ट्रैप के जरिए गोपनीय सरकारी फाइलें और जानकारियां लीक की गई हैं। यह सरकार और प्रशासन के सम्मुख एक बड़ी चुनौती है। जनता की उम्मीद रहती है कि जनप्रतिनिधि उसकी समस्याएं हल करते हुए भलाई का काम करेंगे लेकिन उन्हें अपने झगड़े से फुरसत नहीं है। विधान भवन की लॉबी में बीजेपी के विधायक गोपीचंद पडलकर और एनसीपी (शरद पवार) के विधायक जितेंद्र आव्हाड के कार्यकर्ताओं के बीच जमकर फ्रीस्टाइल हुई। भद्दी गालियां देते हुए मारपीट की गई।
कार्यकर्ताओं को ऐसी छूट क्यों दी गई कि विधान भवन परिसर की गरिमा को अपनी गुंडागर्दी से कलंकित करें? उन्हें किसका वरदहस्त था? वहां बाहरी लोग बड़ी संख्या में एकत्रित कैसे हुए? क्या विधानसभा में भी विधायक सुरक्षित नहीं हैं? किसी प्लानिंग के तहत तो यह सब नहीं हुआ? मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास गृह विभाग है। वे ऐसे विधायकों को उचित हिदायत दें कि मर्यादा और शालीनता का हर हालत में पालन किया जाए तथा ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न होने पाए। उल्लेखनीय है कि 2012 में क्षितिज ठाकुर व अन्य 5 विधायकों ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की विधान भवन के प्रांगण में पिटाई की थी।
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तब तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 5 विधायकों को निलंबित करवाया था। आशा है विधानसभा अध्यक्ष इस समय हुई अशोभनीय घटना को भी गंभीरता से लेंगे। राज्य की समस्याओं और प्रश्नों पर चर्चा के लिए उचित माहौल बनना चाहिए। बहुमत होते हुए भी महायुति में तालमेल नजर नहीं आता। यही हाल विपक्ष के विधायकों का भी है। बहुचर्चित जनसुरक्षा विधेयक पर्याप्त चर्चा के बगैर ही पारित हो गया। इसमें सरकार की सफलता है या विपक्ष की कमजोरी? इस सत्र में बीजेपी विधायकों का ध्यान शिवसेना और खासतौर पर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नगर विकास विभाग को घेरने पर अधिक था।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा