आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, यूपी सरकार के पशुधन और दुग्ध विकास मंत्री धरमपाल सिंह की अनोखी सूझबूझ का जवाब नहीं! उन्होंने घोषणा की है कि प्रदेश की हर गोशाला को गोबर से कंडा बनाने की मशीन दी जाएगी जिससे गोशाला के संचालकों की कमाई होगी और गोशाला का विकास होगा. मशीन के जरिए उपले बनाकर बेचने से क्रांतिकारी परिवर्तन आ जाएगा.’ हमने कहा. ‘उत्तरप्रदेश में पशुचारे का गंभीर संकट है. यदि गाय-बैल को चारा ही नहीं मिलेगा और भूखे-प्यासे रहेंगे तो पर्याप्त गोबर ही नहीं होगा. फिर कंडे बनानेवाली मशीन किस काम की ? बिना इनपुट के आउटपुट कैसे होगा? सरकार इस संबंध में भी विचार करे।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, पशुपालकों को सलाह दी जाती है कि चारे की व्यवस्था करने के लिए लोगों से दान मांगें. समाजसेवी गोशाला के नाम पर चंदा देने को तैयार हो जाते हैं. सरकार कंडे बनाने की मशीन दे सकती है पशुचारे का गंभीर संकट है. यदि गाय-बैल को चारा ही नहीं मिलेगा और भूखे-प्यासे रहेंगे तो पर्याप्त गोबर ही नहीं होगा. फिर कंडे बनानेवाली मशीन किस काम की ? बिना इनपुट के आउटपुट कैसे होगा? सरकार इस संबंध में भी विचार करे.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, पशुपालकों को सलाह दी जाती है कि चारे की व्यवस्था करने के लिए लोगों से दान मांगें. समाजसेवी गोशाला के नाम पर चंदा देने को तैयार हो जाते हैं. सरकार कंडे बनाने की मशीन दे सकती है।
सरकार कंडे बनाने की मशीन दे सकती है लेकिन महंगा चारा देना उसके बूते की बात नहीं है.’ हमने कहा, ‘यह सामान्य ज्ञान की बात है कि सिर्फ मशीन लगा देने से किसी कारखाने में प्रोडक्शन नहीं होता. उसके लिए कच्चा माल भी तो लगता है. खेतों में किसान पराली जला देते हैं. उसका या तो कंपोस्ट खाद बन सकता है या फिर पशुचारे के रूप में इस्तेमाल हो सकता है.जब हाथ से फसल की कटाई होती थी तो पशुओं के लिए धान और भूसा निकल आता था. मशीन से कुछ ही घंटे में कटाई हो जाती है और किसान बचे हुए ठूंठ या पराली जला देते हैं।
इसलिए चारे की समस्या हो गई है. पराली जलाने से प्रदूषण फैलता है जिस पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए. जमीनों पर कब्जे की वजह से खुले चारागाह भी नहीं बचे. लावारिस मवेशी को या तो पकड़कर कांजी हाउस ले जाया जाता है या पशु तस्कर उसे चुराने की ताक में रहते हैं. पहले गर्मियों में चरने के लिए छोड़े गए मवेशी जुलाई तक घर लौट आते थे. अब वह बात नहीं रही. कृषि और पशुपालन का अर्थशास्त्र समझकर ही सरकार को उचित नीति बनानी चाहिए. कंडा बनाने की मशीन देना समस्या का समाधान नहीं है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा