विकसित भारत के लिए जल्द दूर हो एनर्जी गैप (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सरकार के विद्युत उत्पादन वृद्धि के गंभीर प्रयासों के बावजूद देश में अभी भी ‘एनर्जी गैप’ मौजूद है। विभिन्न दलों ने कई बार चुनावी दावे किए कि हम सत्तासीन हुए तो देश का कोई कोना अंधेरे में नहीं रहेगा लेकिन भारत में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर एक महत्वपूर्ण चुनौती है। बिजली की बढ़ती खपत के कारण देश में विद्युत ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है। बीते दो वर्षों में इसमें तकरीबन 50 गीगावाट की बढ़त हुई है। यह कटु सत्य है कि देश के बहुत से क्षेत्रों में ऊर्जा आपूर्ति सीमित, अस्थिर या शून्य है।
यह एनर्जी गैप भविष्य में कई क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। यह स्थिति ऊर्जा की कीमतों, उपलब्धता और स्थिरता पर तो असर डालेगी ही इसके कई परोक्ष प्रभाव भी हैं, औद्योगिक उत्पादन में बाधा आएगी जो रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद पर असर डालेगी। सिंचाई और कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाएं प्रभावित होने से खाद्य सुरक्षा संकट में पड़ेगी। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विकास की गति और धीमी हो जाएगी। डिजिटल शिक्षा और स्मार्ट क्लासरूम जैसी योजनाएं मंथर गति से चलेंगी तो यह ‘ऊर्जा अंतर’ स्मार्ट ग्रिड, इलेक्ट्रिक ट्रांसपोर्ट और स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को धीमा कर देगा। यह जानना जरूरी है कि देश किस स्रोत से कितनी बिजली और बनाए कि वह अपनी बढ़ती जरुरतों के अलावा पर्यावरण का मिलेनियम गोल भी पूरा कर सके? देश के कितने इलाके या क्षेत्रफल अभी भी बिजली की नियमित आपूर्ति से छूटे हुए हैं? ग्रामीण इलाकों तक बिजली पहुंचाने का खर्च कैसे कम हो?
ऊर्जा अंतर के खात्मे हेतु हमारे पास दृढ़ इच्छाशक्ति, सटीक शुद्ध आंकड़े, सुस्पष्ट लक्ष्य निर्धारित कार्य नीति तथा सक्षम टूल्स और तकनीक के साथ सक्रिय क्रियान्वयन आवश्यक है। इन सबकी उपस्थिति में मिलेनियम गोल से पहले यह लक्ष्य पाया जा सकता है। इन सबके लिए व्यवस्था को यह स्वीकारना होगा कि हम देश के सभी इलाकों में बिजली नहीं पहुंचा पाए हैं। इसके संबंध में किए जाने वाले सरकारी दावे सियासी जुमले हैं। ऊर्जा कुशलता का मूल्यांकन बहुत हद तक इन आंकड़ों की गुणवत्ता पर ही निर्भर करता है। भारत में इससे संबंधित आंकड़े हासिल करने के लिए कई स्रोत हैं।
केंद्रीय बिजली प्राधिकरण, केंद्रीय बिजली नियामक आयोग, ग्रिड इंडिया, ऊर्जा, कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के मंत्रालय से भी विद्युत उत्पादन के आंकड़े मिलते हैं। रिन्यूएबल एनर्जी और संबंधित विभाग के इंटरएक्टिव डैशबोर्ड, सरकार का सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की एनर्जी स्टैटिस्टिक्स इंडिया वार्षिकी, ऊर्जा से जुड़े मंत्रालयों और संस्थानों, नीति आयोग जैसे इसके तमाम स्रोत मौजूद हैं।
हालांकि ऊर्जा की मांग और आपूर्ति से जुड़ें आंकड़ों के स्रोतों का विस्तार सकारात्मक है फिर भी इनको इकट्ठा और इनका मिलान करके, सुबोध तरीके से प्रस्तुत करने के लिए किसी केंद्रीय एजेंसी का न होना चुनौती बना हुआ है। इसका समाधान निकाला जाना चाहिए। सुनिश्चित आंकड़े यह काम आसान करेंगे। फिलहाल आंकड़े कहते हैं कि हमने विद्युत उत्पादन और आपूर्ति अथवा खपत के अंतर को काफी हद तक पाटा है। लेकिन आंकलन है कि 2027 तक भारत को शाम के समय 40 गीगावाट तक बिजली की कमी का सामना करना पड़ेगा। बिजली की मांग 2047 तक चार गुना बढ़ सकती है।
सौर ऊर्जा के साथ स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना सबसे अच्छा विकल्प है। सौर ऊर्जा संयंत्रों को नए थर्मल और हाइड्रो प्लांट्स की तुलना में कहीं तेजी से स्थापित किया जा सकता है। ऊर्जा दक्षता में सुधार भी इसमें सहायक होगा। राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022 से 32 के तहत ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए 2032 तक कुल 33 लाख करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी देने पर यह अंतर भरने में मददगार होगी। पीएम कुसुम, सूर्यघर, पैट उजाला जैसी योजनाएं भी इस लक्ष्य को पाने में सहायक साबित होंगी। एक करोड़ मकानों पर ‘सोलर रूफटॉप’ स्थापित करने, उत्पन्न अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में ले जाने की योजना बेहतर है।