आजकल भक्तों की भीड़ चित्रकूट के घाट पर नहीं होती बल्कि एक बड़े ऑडिटोरियम में होती है जिसमें एक जाना पहचाना एंकर जाने माने नेता का इंटरव्यू लेता है। सारे सवाल नेता के लिए अनुकूल होते हैं ताकि वह विपक्ष की बखिया उधेड़ कर स्वयं को ‘देवदूत’ के रूप में स्थापित कर सके। नेता का गंगा और परमात्मा से विशेष लगाव है ऐसा आत्मीय लगाव उनके किसी भी पूर्ववर्ती का नहीं रहा।
नेता ने दावा करते हुए पूरे आत्मविश्वास से कहा, ‘मेरा पक्का मानना है कि परमात्मा ने ही मुझे 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए भेजा है और जब तक यह नहीं होगा, परमात्मा मुझे वापस नहीं बुलाएंगे। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने मुझे विशेष उद्देश्य के लिए भेजा है। ईश्वर मुझे मार्गदर्शन दे रहे हैं, पथ दिखा रहे हैं, परिश्रम और पराक्रम दे रहे है। मुझे पूरा विश्वास है कि जब तक मैं उस लक्ष्य को 2047 तक हासिल नहीं कर लूंगा, मुझे परमात्मा वापस नहीं बुलाएंगे। यह सुनकर भक्तों को गीता में भगवान कृष्ण का अभिवचन यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: याद आ गया होगा। अवतार किसी प्रयोजन को लेकर ही होता है। ईश्वर स्वयं समय नहीं निकाल पाता तो अपनी जगह किसी फरिश्ते या दूत को भेज देता है।
लोग उसे पहचान नहीं पाते तो उनकी नादानी है। फिल्म डॉन में अमिताभ बच्चन को भी बताना पड़ा था- अरे दीवानो मुझे पहचानो, कहां से आया कौन हूं मैं! लक्ष्य या ज्ञटारगेट हासिल करना बड़ी चीज है। इसके लिए लंबी जिंदगी की कामना स्वाभाविक है। विकसित भारत बनाए बिना मोहि कहां विश्राम वाला चिंतन जीवनी शक्ति देता है।
नेता ने स्पष्ट कर दिया कि भगवान ने 2047 तक का एसाइनमेंण् उन्हें दे रखा है इसलिए विपक्ष के लिए अगले 23 वर्षों तक नो वैकेंसी! ईश्वरीय आदेश के सामने जनादेश की क्या औकात! भक्तों की भक्ति में बहुत शक्ति है। वह सदा सर्वदा इसी नेता को पदासीन देखना चाहेंगे। नेता की हर गारंटी विलक्षण ईश्वरीय संकेत से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा भी था- मैं खुद नहीं आया, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।