(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, राजनीति में पक्ष और विपक्ष के नेता एक दूसरे को आईना दिखाया करते हैं लेकिन खुद की सूरत नहीं देखते। देखेंगे भी कैसे! वजह यह है कि राजनीति काजल की कोठरी है जिसमें घुसने के बाद हर चेहरा दागदार हो जाता है। उसमें मतलबपरस्ती के मुंहासे, दगाबाजी के दाग और पाप की परछाइयां नजर आती हैं। इसलिए नेता हमेशा विपक्षी को आईना दिखाते हुए कहता है- जरा इसमें अपनी सूरत देख!”
पड़ोसी ने आगे कहा, ”तू भ्रष्ट है। तेरे अस्तित्व की वजह से मुझे कष्ट है। मैं चाहता हूं कि तेरी पार्टी टूट और बिखर जाए और मैं निष्कंटक होकर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान रहूं, सदा-सर्वदा के लिए! लोगों को मालूम नहीं रहता कि कल क्या होगा लेकिन मैंने तो अभी से 2047 तक का अर्थात 23 वर्ष बाद तक का प्लान बना रखा है कि किस तरह देश की प्रगति करूंगा। मेरे पास है बहुत दूर का विजन और तू विपक्ष में रहकर करता रह भजन! दुनिया की सारी समझ मेरे पास है इसलिए बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनकर दूसरे देशों के नेताओं को ज्ञान बांटता हूं। मैं अलौकिक हूं और तेरे पास लौकी की सब्जी खाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’’
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हमने कहा, ‘‘किस नेता का कैसा दृष्टिकोण है, वह सभी को मालूम है। रही बात आईने की तो उसमें बचपन, जवानी और बुढ़ापे में एक ही इंसान की भिन्न छवि नजर आती है। बढ़ती उम्र में मेकअप की परत चढ़ानेवाली हीरोइन हमेशा खुद को धोखा देती है, आईने को नहीं! आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने यह कहकर दर्पण फोड़ दिया हो कि इसमें मैं दुर्गुणी, घमंडी और मक्कार नजर आता हूं। यह शीशा मेरी कुरूपता को उजागर करता है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जब राजा दशरथ को कनपटी के बालों में सफेदी नजर आई तो उन्होंने तत्काल निश्चय कर लिया कि अयोध्या को नया राजा देना होगा। आज सिर के बाल, दाढ़ी, भृकुटि सभी सफेद हो जाते हैं लेकिन नेता अपने लिए एक और टर्म मांगता है। राजा भतृहरि ने कहा था, तृष्णा न जीर्णा, वयमेव जीर्णा! उम्र बढ़ती चली जाती है लेकिन तृष्णा या लालसा कभी खत्म नहीं होती। पद का मोह नेता की संजीवनी होता है। जहां तक आईने की बात है, कबीर ने सही कहा था- तेरे दया- धरम नहीं मन में, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में!’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा