बिहार में BJP की राह में जातिवाद बाधक (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: देश के अन्य हिंदी भाषी राज्यों के समान बिहार में बीजेपी अपना प्रभुत्व जमा पाने में सफल नहीं हो पाई।विभिन्न जाति समूह और उनकी प्रतिस्पर्धा की वजह से वहां हिंदुत्व की विचारधारा पर आधारित मजबूत गठबंधन नहीं बन पाया।2000 के बाद से बिहार में किसी भी पार्टी ने कुल वोटों में से 25 फीसदी वोट हासिल नहीं किए।2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन उसे सिर्फ 22 प्रतिशत वोट ही मिले।
बिहार में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ता है।उसकी सहयोगी पार्टी जदयू खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती है तथा बीजेपी की हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा में सहभागी नहीं है।बिहार में बीजेपी के पास योगी आदित्यनाथ जैसा कोई तेजतर्रार हिंदूवादी नेता भी नहीं है।उत्तरप्रदेश अधिक सांप्रदायिक है जबकि बिहार में जातिवादी हिंसा अधिक है जहां धर्म के नाम पर राजनीति नहीं की जा सकती।इस बार के विधानसभा चुनाव में भी बिहार का यह चरित्र बदलनेवाला नहीं है।नीतीश कुमार ने 2023 में जाति आधारित जनगणना कराई थी।इसकी वजह से बिहार में जाति की राजनीति अधिक मजबूत हुई है।
वहां जातिवाद की जड़ें गहरी हैं।प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की चुनावी रणनीति भी जाति के गणित पर आधारित है।पार्टियां उम्मीदवारों का चयन भी जातीय प्रभाव को देखकर करती हैं।बीजेपी प्रत्याशी चयन में ऊंची जातियों को प्राथमिकता देती रही है।2020 के विधानसभा चुनाव में निर्वाचित उसके 74 विधायकों में से 33 ऊंची जाति के थे।बीजेपी कोई मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा नहीं करती।उसके शेष विधायकों में से 26 ओबीसी तथा 2 ईबीसी थे।बीजेपी की सहयोगी पार्टी जदयू का चुनावी गणित अलग है।उसके 43 विधायकों में से 10 उच्च जाति के तथा 22 ओबीसी व ईबीसी हैं।जदयू के 10 विधायकों में 7 कुर्मी और 4 यादव हैं।
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जब लालूप्रसाद का बिहार में वर्चस्व था तब यादवों का बोलबाला था लेकिन 2020 में लालू का प्रभाव घटने के बाद गैरयादव ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ा।कुर्मी, कोयरी, कुशवाहा तथा कुछ ईबीसी को आगे बढ़ने का मौका मिला।2020 में बीजेपी के टिकट पर 28 ओबीसी विधायक चुने गए जिनमें बनिया व बंजारा थे।बिहार की आबादी में 36 से लेकर 40 प्रतिशत ईबीसी हैं लेकिन उनकी विधानसभा में 11 प्रतिशत सीटें हैं।लालू प्रसाद ने पिछली बार चुनाव को अगड़ा विरुद्ध पिछड़ा का रूप दिया था।बिहार की राजनीति में जाति और उपजाति अपना विशेष असर डालती है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा