(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने किसी ऋषि-मुनि के समान त्याग की मिसाल पेश की है। उन्होंने आगामी 4 जुलाई के ब्रिटेन में आम चुनाव कराने की घोषणा कर दी। वह सिर्फ 20 महीने देश के प्रधानमंत्री रहे। भारतीय मूल के होने के बावजूद उन्होंने भारत के नेताओं से सीख नहीं ली कि खून पीनेवाली जोंक के समान पद से चिपके रहना चाहिए। सुनक अनुभवहीन हैं। उन्हें शरद पवार और प्रधानमंत्री मोदी से मार्गदर्शन लेकर राजनीति में सक्रियता का पाठ सीखना चाहिए था। सुनक की टोरी पार्टी के नेता अभी चुनाव के लिए तैयार नहीं थे और मानकर चल रहे थे कि चुनाव अक्टूबर में होगा लेकिन चुनाव का एलान कर सुनक ने सबको मुसीबत में डाल दिया। पीएम पद किसी नौकरी के समान नहीं होता कि जब चाहा, वीआरएस ले लिया।’’
हमने कहा, ‘‘सुनक रईस आदमी हैं। वह अपनी पत्नी अक्षता मूर्ति की दौलत मिलाकर ब्रिटेन के किंग चार्ल्स से भी ज्यादा धनवान हैं। खास बात यह है कि ब्रिटेन के 200 वर्ष के इतिहास में सुनक सबसे युवा और दौलतमंद प्रधानमंत्री हैं। अंग्रेजों के देश में वह पहले भारतीय मूल के पीएम हैं। वह महंगी प्राइवेट स्कूल में पढ़े हैं जहां वह हेडब्वाय या स्कूल मॉनिटर थे। इसके बाद उन्होंने ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड और अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। पिछले लगभग 9 वर्षों से वे ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य हैं। उनका एक बेहद महंगा अपार्टमेंट कैलिफोर्निया के सांटा मोनिका में भी है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमारे नेता दावा करते हैं कि 140 करोड़ भारतीयों की ताकत उनके साथ है। कुछ ऐसा ही दावा सुनक ने ब्रिटेन में क्यों नहीं किया? हमारे नेता महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों की अनदेखी करते हैं। ऐसे ही सुनक को भी ब्रिटेन की गिरती इकोनॉमी और ब्रेग्जिट मुद्दे की उपेक्षा करनी चाहिए थी। सत्ता बड़े भाग्य से मिलती है। किसी न किसी बहाने जनता को बेवकूफ बनाकर पद पर आजन्म बने रहने की कोशिश करनी चाहिए।’’
हमने कहा, ‘‘डूबते जहाज को चूहे भी छोड़ देते हैं। सुनक को समझ में आ गया कि 14 वर्ष तक पॉवर में रहने के बाद उनकी पार्टी की लोकप्रियता बुरी तरह घटती जा रही है। ब्रिटिश जनता अब लेबर पार्टी को पसंद करने लगी है इसलिए पद की हाय-हाय न करते हुए ऋषि सुनक ने बाय-बाय करने का इरादा बना लिया है। अपने यहां पद का मोह रखने वाले नेताओं को कबीर की वाणी याद रखनी चाहिए- दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों कि त्यों धर दीन्हीं चदरिया भीनी रे भीनी!’’
लेखक- चंद्रमोहन द्वीवेदी