मध्यप्रदेश में लड्डू घोटाला (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल डिंडोरी जिले की अंडई ग्राम पंचायत में शासकीय आयोजन के बोगस बिल पास किए गए। इसमें 12 लड्डुओं का दाम 1,440 रुपए लगाया गया अर्थात 120 रुपए का एक लड्डू पड़ा। इस तरह निचले स्तर में भी काफी भ्रष्टाचार होता है।’ हमने कहा, ‘जहां तक लड्डू की बात है उसकी एसआईटी जांच की जा सकती है। पता लगाया जाए कि कहीं यह कानपुर से आया ‘ठग्गू का लड्डू’ तो नहीं है। उस दुकान पर बोर्ड लगा है- ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं! लड्डू रवे का था, बेसन का था, बूंदी का था या मोतीचूर का?
इसके अलावा डिलीवरी लड्डू भी होते हैं जो खारिक, बादाम, किशमिश, काजू पिस्ता, गुड़ व गोंद से बनाए जाते हैं। चालाक नेताओं के दोनों हाथों में लड्डू होते हैं। राजनीति में कुछ नेताओं की स्थिति अपने खोटे कर्मों की वजह से ‘आ बे लड्डू, जा बे लड्डू’ जैसी हो जाती है। उन्हें कभी भी पार्टी या सरकार में अंदर-बाहर किया जा सकता है। ऐसे नेताओं को जोर का झटका लगता है। कुछ संभल जाते हैं, लेकिन ज्यादातर उखड़ जाते हैं।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, आप का ध्यान शायद पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ और महाराष्ट्र के कृषि मंत्री कोकाटे पर लगा है। इनकी बजाय मध्यप्रदेश की ग्राम पंचायत की घपलेबाजी पर गौर कीजिए। वहां आदिवासी परंपरा के नाम पर 3,700 रुपए की बीड़ी फूंक दी गई। पंचायत के सचिव प्रेमसिंह मरकाम ने यह बिल पास करते हुए कहा कि आदिवासी रीति-रिवाज के तहत बीड़ी-तंबाकू का उपयोग किया जाता है। पता नहीं, उन्होंने बीड़ी के साथ माचिस का खर्च जोड़ा या नहीं!’
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हमने कहा, ‘देहाती और आदिवासी क्षेत्र में आमतौर पर बिजली नहीं रहती। इसलिए लोग रात में पैदल चलते समय बीड़ी जलाते हुए रास्ता तय करते हैं। इससे अंधेरे में सिग्नल मिल जाता है कि कोई आ रहा है। पंचायत स्तर में लड्डू या बीड़ी बिल, मीटिंग के खर्च के नाम पर भ्रष्टाचार होता है। ज्यादा बड़े घोटाले करने की उनकी हैसियत नहीं रहती। उसी पंचायत में बीजेपी जिला अध्यक्ष के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 2500 रुपए टैक्सी भाड़ा भी हिसाब में बताया गया जबकि अध्यक्ष ने कहा कि वह उस पंचायत में गए ही नहीं थे। इस तरह निचले स्तर पर भी बेईमानी होती है। जहा तक बीड़ी के बिल की बात है, हमें फिल्म ‘ओंकारा’ का गीत याद आ गया- बीड़ी जलाइले जिगर से पिया, जिगर मा बड़ी आग है!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा