बीजेपी नेता लोणीकर का बयान (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, सरकार जनता से टैक्स लेकर सरकारी खजाना भरती है। उसी में से सारी जनकल्याण योजनाएं चलती हैं तथा मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों का वेतन-भत्ता भी दिया जाता है। इतने पर भी पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक बबनराव लोणीकर ने केंद्र सरकार की आलोचना करनेवाले युवाओं को फटकारते हुए कहा कि तुम्हारे कपड़े-जूते, मोबाइल, पिता की पेंशन हमारी सरकार की देन है। तुम्हारे पिता को बुआई के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 6,000 रुपए दिए हैं। तुम्हारी मां, बहन और पत्नी को लाड़की बहीण योजना की राशि हमारी सरकार ने दी है।’
हमने कहा, ‘लोगों की भलाई और वंचित-कमजोर लोगों की मदद करना सरकार का कर्तव्य है। इसके लिए एहसान क्यों जताना चाहिए? पूर्व मंत्री लोणीकर ने अपनी जेब से तो यह सब नहीं दिया है। उपकार करो लेकिन गिनाओ मत! ‘नेकी कर दरिया में डाल’ जैसी उदार भावना रहनी चाहिए।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, लोणीकर ने मक्खन लगाने की बजाय सरकार की आलोचना करनेवाले युवाओं को तीखी लाल मिर्च की खुराक दे दी। जब सरकारी योजनाओं का फायदा लेते हो तो मुंह बंद रखो। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सरकार की आलोचना मत करो। रवैया ऐसा होना चाहिए- तुमको जो पसंद है वो बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे। जिसका दिया खा रहे हो, उसके साथ नमक हरामी मत करो। आलोचना करनी है तो विपक्ष की करो।
लोणीकर ने युवाओं को सरकार का उपकार याद दिलाया है। इसके लिए कभी तीखे शब्द भी कहने पड़ते हैं। बाद में लोणीकर ने कहा कि मैं गलत नहीं हूं फिर भी मैं माफी मांगता हूं।’ हमने कहा, ‘मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बिगड़ी बात संभालते हुए कहा कि हम जनता के मालिक नहीं बल्कि सेवक हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी खुद को प्रधान सेवक कहते हैं।’
पड़ोसी ने कहा, निशानेबाज, बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक कवि रहीम बहुत दान दिया करते थे लेकिन नजरें नीचे झुकाकर। वह मानते थे कि देनेवाला ईश्वर है और वह सिर्फ निमित्त हैं। पूछने पर रहीम ने कहा- देनहार कोऊ और है, भेजत सो दिन-रैन, लोग भरम हम पर करें, याते नीचे नैन। उपनिषद में कहा गया है- अयं निज: परोवेति गणना लघु चेतसाम, उदार चरितां तु वसुधैव कुटुम्बकम! इसका अर्थ है- यह मेरा है, यह दूसरे का है, ऐसी गणना तुच्छ मन रखनेवाले लोग करते हैं। जिनका मन विशाल है उनके लिए संपूर्ण वसुंधरा कुटुंब के समान है। बाएं हाथ को पता नहीं चलना चाहिए कि दाहिने हाथ ने क्या दिया।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा