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अब कैसे होंगे भारत-बांग्लादेश के रिश्ते, पाक और चीन का खेल रोकना होगा

पाकिस्तान और चीन की कोशिश यही रहेगी कि बांग्लादेश की अशांति व अस्थिरता का लाभ उठाते हुए वहां अपना प्रभाव बढ़ाया जाए और नई सरकार को भारत के प्रभाव से दूर रखा जाए, क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ने से रोकने के लिए भारत को अमेरिका जैसे मित्र देश का सहयोग लेना होगा।

  • By किर्तेश ढोबले
Updated On: Aug 07, 2024 | 10:56 AM

(डिजाइन फोटो)

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नवभारत डेस्क: बांग्लादेश में व्याप्त हिंसा भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि वहां हिंदुओं की हत्या, लूटपाट, मंदिरों की तोड़फोड़ और भीड द्वारा मकानों को जलाए जाने की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। लाखों की तादाद में लोग भागकर भारत के राज्यों में आ सकते हैं। पड़ोसी देश की अस्थिरता भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। पूर्व पीएम अटलबिहारी वाजपेयी ने सही कहा था कि आप अपना मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं। परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों। पड़ोसी से तालमेल करना ही पड़ता है। अब भारत सरकार को बांग्लादेश के नए शासकों से निभाव करना होगा।

यह सच है कि शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद उपमहाद्वीप की राजनीति नया मोड़ लेगी। ऐसी स्थिति में राजनीतिक व कूटनीतिक कौशल अपनाने की आवश्यकता है। इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों व युवाओं को भड़काया। जमाते इस्लामी की स्टुडेंट विग को आईएसआई की तरफ से समर्थन मिला है। इस संगठन का काम बांग्लादेश में हिंसा भड़काना और छात्रों के विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदलना था।

शरणागति देता रहा भारत

जब नेपाल में राणाशाही के विरोधियों को दमन चक्र के चलते वहां से भागना पड़ा था तब कोईराला जैसे लोकतंत्रवादी नेताओं को भारत ने शरण दी थी। तिब्बत से भागने पर मजबूर दलाई लामा को भी शरण देकर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बसाया गया था। श्रीलंका में विद्रोह के बाद वहां के तत्कालीन पीएम विक्रमसिंघे भारत आ गए थे। अब हसीना वाजेद की ढाका से दिल्ली तक का सुरक्षित प्रवास भारत ने सुनिश्चित कराया था। अगले कुछ दिन बताएंगे कि क्या भारत बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से काम चलाऊ संबंध बना पाएगा !

यह भी पढ़ें:- हिटलर हो गई थी शेख हसीना, बांग्लादेश की जनता ने भगाया

पाक और चीन का खेल रोकना होगा

पाकिस्तान और चीन की कोशिश यही रहेगी कि बांग्लादेश की अशांति व अस्थिरता का लाभ उठाते हुए वहां अपना प्रभाव बढ़ाया जाए और नई सरकार को भारत के प्रभाव से दूर रखा जाए, क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ने से रोकने के लिए भारत को अमेरिका जैसे मित्र देश का सहयोग लेना होगा। बांग्लादेश में शांति स्थापना और व्यापार संबंध यधावत रखने के लिए यूएई और सऊदी अरब की मदद भी भारत ले सकता है। बांग्लादेश की स्थापना को 50 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है। इसलिए 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का बार-बार जिक्र अब कोई मायने नहीं रखता।

बांग्लादेश में बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान का पुतला तोड़ा गया। वहां इतिहास की व्याख्या को लेकर जनमत विभाजित है 15 अगस्त 1975 को मुजीब की हत्या के साथ ही कट्टरपंथी पाक परस्त ताकतों ने अपना रंग दिखा दिया था। बांग्लादेश में अब मुजीब और हसीना को चाहनेवाले कमजोर पड़ चुके हैं। बांग्लादेश के नए शासकों से व्यावहारिक धरातल पर संबंध जारी रखने होंगे। शेख हसीना को मानवीय आधार पर शरण देना अलग मुद्दा है लेकिन बांग्लादेश में जो भी सरकार आए उसके साथ सुदूर हित में अच्छे संबंध रखने होंगे। भारत कभी नहीं चाहेगा कि पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन, पूर्व में बांग्लादेश से लगातार अनबन बनी रहे। बांग्लादेश में जो हुआ वह उसका आंतरिक मामला है लेकिन उसका नुकसान भारत को नहीं उठाना है इसीलिए उससे लगी सीमा पर बीएसएफ को सतर्क कर दिया गया है। चीन ने पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, नेपाल, म्यांमार सभी को अपने चंगुल में फंसाया है। अब बांग्लादेश में भी वह अपना जाल फैलाएगा।

यह भी पढ़ें:- कमला हैरिस का अफ्रीकी या भारतीय मूल, ट्रंप के हृदय में उठता शूल

हसीना कहां चूक गई

शेख हसीना ने बांग्लादेश में विकास किया। राष्ट्रीय आय व निर्यात में वृद्धि की। वहां की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर बढ़ाई, भारत से अच्छे संबंध रखे। इसके बावजूद अपने देश में उनका रवैया तानाशाह का था। विपक्षी पार्टी को चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया और आरक्षण मुद्दे पर मनमानी की। भारत ने पहले भी हसीना को सतर्क किया था लेकिन जो होना था वह होकर रहा। लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा

Bangladesh violence of serious concern for india incidents of killing of hindus looting

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Published On: Aug 07, 2024 | 10:41 AM

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