खुद की नकली शवयात्रा निकाली (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, इतिहास में मोहम्मद तुगलक को सनकी बादशाह माना जाता है जो अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद ले गया था और सारे दिल्लीवासियों को वहां जाने का फरमान सुनाया था। रास्ते में चलते-चलते कितने ही लोगों की भूख-प्यास और थकावट से मौत हो गई।’ हमने कहा, ‘सनकी लोग तो आज भी मौजूद हैं। बिहार के गया जिले के 74 वर्षीय पूर्व वायुसैनिक मोहनलाल ने जीते जी अपनी शवयात्रा निकलवाई। उनके घर से फूलमालाओं और बैंडबाजे के साथ अर्थी जब मुक्तिधाम पहुंची तो मोहनलाल खुद उठ खड़े हुए और बोले कि मैं देखना चाहता था कि मेरी अंतिम यात्रा में कौन-कौन शामिल होता है। इसमें शामिल सैकड़ों लोगों को देखकर मोहनलाल को तसल्ली हुई कि उन्हें चाहनेवाले कम नहीं हैं।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, यह तो लोगों को बेवकूफ बनाना हुआ। उस व्यक्ति के नाते-रिश्तेदार व परिचित सारा काम-धाम छोड़कर इस शवयात्रा में शामिल हुए होंगे। एक बार ऐसा अनुभव आने के बाद लोग उनसे मुंह फेर लेंगे। आपको कहानी याद होगी कि एक व्यक्ति व्यर्थ ही भेड़िया आया- भेड़िया आया चिल्लाकर लोगों को मदद के लिए बुलाता था। लोग लाठी-डंडा लेकर एक दो बार आए लेकिन पता चल गया कि यह झूठा आदमी है। जब सच में उसके घर भेड़िया आया तो चिल्लाने पर कोई मदद करने नहीं आया।’ हमने कहा, ‘एक और भी रिवाज है कि यदि कोई कौआ आकर किसी व्यक्ति के सिर पर बैठ जाए तो अनिष्ट टालने के लिए लोगों के बीच उसके मरने की झूठी खबर फैला दी जाती है। जो भी व्यक्ति उसके परिजनों को सांत्वना देने आता है, वह बुद्ध बनता है।
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मौत जैसे गंभीर मामले में ऐसी नौटंकी नहीं करनी चाहिए। रही बात यह चिंता करने की कि मरने के बाद अंतिम यात्रा में कौन आएगा तो ऐसा सोचना बेकार है। जो व्यक्ति सज्जन है, दूसरों की सहायता व परोपकार करता है और लोकप्रिय है, उसकी अंतिम यात्रा में उसे दिल से चाहने वाले लोग शामिल होते ही हैं। दुनिया छोड़ने के बाद यहां से क्या साथ जाता है! सिर्फ व्यक्ति का यश व कीर्ति अमर रहते हैं। यदि पुनर्जन्म होता भी है तो पिछले जन्म की कोई स्मृति साथ नहीं रहती। इसीलिए कहावत है- आप मरे जग सून!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा