क्यों होती है शिव जी की आधी परिक्रमा (सौ.सोशल मीडिया)
Shiv Parikrama Niyam : सनातन धर्म में सावन के महीने का बहुत अधिक महत्व है। सावन मास को मनोकामनाएं पूरा करने का महीना भी कहा जाता है। इस दौरान शिव मंदिरों में भक्तों का सैलाब देखने को मिल रहा है। अक्सर देखा जाता है कि भगवान की पूजा-पाठ के साथ कई लोग मनोकामना पूरी जल्द हो जाए इसके लिए भगवान की परिक्रमा भी लगाते हैं। मान्यता है कि परिक्रमा करने से भगवान प्रसन्न होते है।
देवी-देवताओं की परिक्रमा करना पूजा पाठ का ही एक हिस्सा माना जाता है, लेकिन क्या आपको पता है शिव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए। आइए जानते है इस बारे में ज्योतिष से
आपको बता दें, भगवान शिव को भोले बाबा के नाम से जाना जाता है। वे योगी और अनुशासन के प्रतीक माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि शिव जी की पूजा और परिक्रमा करने से जीवन की हर बाधा दूर हो जाती है। साथ ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है, लेकिन इसके कुछ नियम हैं, जिसका पालन भी बहुत जरूरी है।
दरअसल, ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति के चारों ओर पूर्ण, गोल घेरे में नहीं जानी चाहिए।
ऐसा कहा जाता है कि शिवलिंग की परिक्रमा करते समय जलस्थान या जलधारी को भूलकर भी नहीं लांघना चाहिए, क्योंकि शिव जी पर चढ़ाए गए जल में शिव और शक्ति की ऊर्जा का कुछ अंश आ जाता है, जिसके चलते उसे लांघने से व्यक्ति को वीर्य या रज से जुड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिषयों के अनुसार, सनातन शास्त्रों के अनुसार, शिव जी की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से करें। फिर बाईं तरफ से शुरू करके जलहरी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा करें। इसके बाद विपरीत दिशा में लौटें और दूसरे सिरे तक आकर अपनी परिक्रमा को पूरी करें। साथ ही परिक्रमा दाईं तरफ से गलती से भी न शुरू करें। यह शिव जी की आधी परिक्रमा कहलाती है।
हिंदू धर्म मे भगवान कि परिक्रमा लगाना एक विधान है। परिक्रमा हमेशा पूर्ण श्रद्धा और सच्चे मन से लगानी चाहिए। परिक्रमा के दौरान हमेशा परमात्मा का ध्यान करना चाहिए और परिक्रमा मार्ग में मंत्र का जाप करना चाहिए।
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मान्यता है कि परिक्रमा लगाने से इंसान को शुभ फल की प्राप्ति होती है। कष्टों से छुटकारा मिलता है और साथ ही निगेटिव ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होता है।