
नवंबर में प्रदोष व्रत कब-कब है (सौ.सोशल मीडिया)
November Pradosh Vrat 2025: वैसे तो, हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत-त्योहार हैं, जो देवों के देव भगवान शिव की पूजा- अर्चना के लिए समर्पित होते हैं। लेकिन,हिंदू लोक मतों के अनुसार, प्रदोष व्रत सभी व्रतों में एक खास महत्व रखता है। अगर प्रदोष व्रत की बात करें तो, शिव भक्तों के लिए प्रदोष व्रत बड़ा फलदायक एवं पुण्यदाई माना गया है।
आपको बता दें, जिस प्रकार हर महीने में दो बार एकादशी मनाई जाती है, ठीक उसी तरह महीने में दो बार प्रदोष व्रत भी मनाई जाती हैं। ऐसे में चलिए आपको बताते हैं कि नवंबर में प्रदोष व्रत कब-कब रखा जाएगा।
आपको बता दें, नवंबर के महीने में एक प्रदोष व्रत कार्तिक मास का आखिरी (शुक्ल पक्ष) प्रदोष व्रत होगा और एक मार्गशीर्ष मास का पहला (कृष्ण पक्ष) प्रदोष व्रत होगा। हालांकि, ये दोनों प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ेंगे, इसलिए इन्हें सोम प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 नवंबर को सुबह 5:07 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, त्रयोदशी तिथि का समापन 4 नवंबर को देर रात 2:05 मिनट पर होगा।
ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक, नवंबर का पहला प्रदोष व्रत सोमवार 3 नवंबर को रखा जाएगा। मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा प्रदोष काल में की जाती है।
शाम 5:34 मिनट से रात 8:11 मिनट तक।
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 नवंबर को सुबह 04:47 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, त्रयोदशी तिथि का समापन 18 नवंबर को सुबह 07:12 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक, नवंबर का दूसरा प्रदोष व्रत 17 नवंबर 2025 को रखा जाएगा।
प्रदोष काल पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 05:27 मिनट से 8:07 मिनट तक ।
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार नवंबर महीने में पड़ने वाले शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष के दोनों प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ रहे हैं, जिसे सनातन धर्म में भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित किया गया है।
ऐसे में इस व्रत का महात्म्य और भी बढ़ जाता है। अगर हिंदू मान्यता की मानें तो, सोमवार का दिन चंद्र देवता के लिए भी समर्पित है जो मन के कारक माने जाते हैं और भगवान शिव के माथे को सुशोभित करते हैं।
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कहा जाता है कि सोम प्रदोष का व्रत करने पर साधक की सभी मानसिक समस्याएं दूर और भक्तों की सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इसलिए सनातन धर्म में इस व्रत को सबसे श्रेष्ठ एवं फलदायक माना गया है।






