
सबसे बड़ा दान क्या है? (सौ.सोशल मीडिया)
Premanand Ji Maharaj Naam Ki Mahima: हिंदू धर्म में दान को सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। बचपन से हमें सिखाया जाता है कि जरूरतमंद की मदद करने से ईश्वर की कृपा मिलती है और जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है। आध्यात्मिक गुरु और संत प्रेमानंद महाराज अपने सरल और गहन उपदेशों के कारण लाखों भक्तों के बीच आज पूजनीय माने जाते है।
उनका हर प्रवचन जीवन की दिशा बदलने की क्षमता रखता है हाल ही में, उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर बड़ी तेज़ी से वायरल हो रहा है, जिसमें भक्तों द्वारा एक सवाल किया गया है कि सबसे बड़ा दान क्या है? जानिए क्या बताए प्रेमानंद जी महाराज जी इस बारे में-
सबसे बड़ा दान (परम दान) अपने जीवन और अपनी श्वास को प्रभु के चरणों और नाम के लिए समर्पित कर देना है। नाम को “परमम दानम” कहा गया है।
प्रभु के चरणों में अपने जीवन का दान कर देना और अपनी श्वास को प्रभु के नाम कर देना—इससे बड़ा कोई दान नहीं है।
गुरुदेव और संतों को परम दानी कहा जाता है, क्योंकि वे नाम दान (या भगवत लीला का दान) करते हैं। जो साधु कृष्ण का नाम जप करते हैं, उनके समान कोई बड़ा दानी नहीं है।
ध्रुव दास जी ने 42 लीला में लिखा है कि सुमेरु जैसा स्वर्ण दान करना, कन्या दान करना, काशी या प्रयाग में अन्न दान और भूमि दान जैसे नाना प्रकार के दान करना, ये सभी फीके पड़ जाते हैं।
जो नाम जप कर रहा है (कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण), उसके समान कोई बड़ा दानी नहीं है। इसका कारण यह है कि अन्य दान मृत (नाशवान माया) होते हैं, जबकि कृष्ण नाम सत्य और अविनाशी है।
नाम जप को परम दान मानते हुए, उसे सुरक्षित रखने के लिए कई नियम और सावधानियाँ बताई गई हैं:
1. निष्काम भाव: नाम जप का फल किसी तुच्छ कामना की पूर्ति के लिए नहीं बेचना चाहिए। यदि आप किसी नाशवान वस्तु (जैसे मुकदमा जीतना, नौकरी लगना) के लिए नाम जप का फल चाहते हैं, तो आप सच्चिदानंद नाम की कीमत लगाकर उसे बेच देते हैं। ऐसा करने से नाम हृदय में प्रेम प्रकाशित नहीं करेगा। भजन के बदले कुछ नहीं मांगना चाहिए; नाम जप का उपयोग केवल भगवान को प्राप्त करने के लिए करना चाहिए, न कि लौकिक लाभ के लिए।
2. चोरी से बचाव: नाम रूपी धन को चोर नहीं चुरा सकता (यह अलौकिक संपत्ति है)। हालाँकि, अलौकिक चोर (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर) नाम जपने की वृत्ति को चुरा लेते हैं और नाम जप के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं। इन ठगों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर) की दृष्टि साधक की साधना की गठरी लूटने पर लगी रहती है। साधक को होश में रहकर नाम को बेचना नहीं चाहिए।
3. अशुद्धियों से बचाव: कई जन्मों के किए गए सुकृत (पुण्य कर्म) भी क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं यदि साधक पर दोष दर्शन, पर निंदा, या वैष्णव अपराध करता है। ये विकार नाम जप के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं।
4. निरंतरता और शुद्धिकरण: नाम जप में कोई नियम (देश, काल, ग्रह नक्षत्र) नहीं है। इसमें पात्रता या अपात्रता का भी भेद नहीं है। कोई भी (पुरुष, स्त्री, नपुंसक, चराचर जीव) जो कपट त्याग कर सर्व भाव से नाम जपेगा, उसे परम पद प्राप्त होगा।
ये भी पढ़े:-तुलसी की माला किसे नहीं पहननी चाहिए, भगवान विष्णु की कृपा के लिए कब करें इसे धारण और कैसे पहचानें
5. विकारों का सामना: नाम जप परम तप है, क्योंकि जब यह शुरू होता है तो हृदय में आग पैदा होती है। इस गर्मी से छुपे हुए विकार (वासनाएँ) घबराकर बाहर भागते हैं। यदि उपासक को लगे कि गंदगी बढ़ रही है (जो वास्तव में गंदगी का बाहर निकलना है), तो उसे घबराना नहीं चाहिए, बल्कि नाम और बढ़ाना चाहिए, जिससे हृदय निर्मल हो।






