
Premanand Ji Maharaj (Source. Pinterest)
Shri Premanand Ji Maharaj Spiritual Life: आधुनिक जीवन में अधिकतर लोग दूसरों को प्रसन्न रखने की होड़ में खुद को भूलते जा रहे हैं। इसी संदर्भ में प्रसिद्ध संत श्री प्रेमानंद जी महाराज का संदेश आज के समय में और भी प्रासंगिक हो जाता है। वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं “दूसरों को खुश करने की कोशिश मत करो, यह एक ऐसा जाल है जो इंसान को और अधिक उलझाता चला जाता है।”
महाराज जी के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति दूसरों के लिए अपना पूरा जीवन तक न्योछावर कर दे, तब भी जो लोग ईश्वर से विमुख हैं, वे कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। सच्चाई यह है कि “केवल भगवान को प्रसन्न करने से ही पूरा संसार प्रसन्न होता है,” इसलिए मनुष्य का कीमती समय दूसरों की इच्छाओं को पूरा करने में व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
श्री प्रेमानंद जी महाराज सांसारिक सुखों की तुलना मरुस्थल में दिखाई देने वाले जल के भ्रम से करते हैं। जैसे प्यासा हिरण पानी के भ्रम में दौड़ता रहता है लेकिन उसकी प्यास नहीं बुझती, वैसे ही संसार के भोग भी मन को तृप्त नहीं कर पाते। वे कहते हैं कि हमारे दुष्ट इंद्रियां और चंचल मन हमें यह भ्रम देते हैं कि विषयों में सुख है, जबकि वास्तव में वे हृदय को जलाने का कार्य करते हैं। पापपूर्ण आचरण के कारण मनुष्य भय, चिंता और अवसाद के चक्र में फंस जाता है।
महाराज जी बताते हैं कि यह मानव शरीर अत्यंत दुर्लभ है, जिसे केवल एक उद्देश्य के लिए मिला है ईश्वर की प्राप्ति। इसके लिए सांसारिक ममता को तोड़कर दिव्य प्रीति को अपनाना आवश्यक है।
वे समझाते हैं कि माता-पिता, पत्नी या बच्चों को भौतिक स्वामित्व की दृष्टि से न देखें, बल्कि उनमें ईश्वर का अंश देखें। जैसे एक ही बिजली अलग-अलग उपकरणों में अलग रूप में काम करती है, वैसे ही एक ही दिव्य तत्व सभी में प्रवाहित है।
श्री प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं “हरिनाम और चतुराशी जी के पद साधारण शब्द नहीं, बल्कि साक्षात भगवान की उपस्थिति हैं।” एकाग्र चित्त से नाम-स्मरण करने पर प्रेम और आनंद का ऐसा प्रकाश मिलता है कि संसार खोखला प्रतीत होने लगता है। वे वृंदावन आकर रसिक भक्तों के सत्संग की सलाह देते हैं, क्योंकि उनका संग जन्म-जन्मांतर के पापों को भस्म कर देता है।
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महाराज जी ‘कच्चे धर्मी’ यानी अपरिपक्व साधकों से भी सावधान रहने को कहते हैं, जो ज्ञान का प्रदर्शन, गुरु से तर्क या धन-प्रतिष्ठा की लालसा में धर्म का सार खो बैठते हैं। सच्चा भक्त वही है जो प्रभु की दी हुई स्थिति में संतुष्ट रहता है।
वे एक उदाहरण देते हैं जैसे कुम्हार के घर में गया कुत्ता सैकड़ों मटकों में घूमता है, लेकिन सब सूखे पाकर खाली हाथ लौट आता है। ठीक वैसे ही जो व्यक्ति ईश्वर को छोड़कर संसार में सुख खोजता है, उसे अंततः निराशा ही मिलती है।






