सर्वपितृ अमावस्या को तुलसी की पूजा करें या नहीं (सौ.सोशल मीडिया)
Sarva Pitru Amavasya 2025: हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समापन जिस दिन होता है, उस दिन को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाती है। आपको बता दें, इस साल यह पावन तिथि 21 सितंबर, रविवार को पड़ रही है। सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसी दिन साल का आखिरी सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है। जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।
हालांकि यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। सर्वपितृ अमावस्या वह तिथि है, जब पितृ अपने पितृलोक को वापस लौट जाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन तुलसी की पूजा करना चाहिए या नहीं।
ज्योतिष विशेषज्ञ के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण का साया भी रहने वाला है। ऐसे में इस दिन पर तुलसी पूजा करना शुभ नहीं माना गया। इसके साथ ही इस दिन पर तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए और न ही तुलसी को स्पर्श करना चाहिए।
अगर आप इन नियमों को पालन नहीं करते है तो आपको जीवन में नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। वहीं अगर आप इन नियमों का ध्यान रखने हुए तुलसी से जुड़े ये काम करते हैं, तो इससे आपको अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं।
अगर आप आर्थिक तंगी से जूझ रहे है, तो इसके लिए आप सर्वपितृ अमावस्या के दिन ये उपाय कर सकते हैं। इसके लिए एक पीले रंग का धागा या फिर लाल कलावा लेकर उसमें 108 गांठ लगाएं। इसके बाद इस धागे को तुलसी के गमले में बांध दें।
इसके साथ ही आप सर्वपितृ अमावस्या की शाम को तुलसी के पास एक घी का दीपक जलाकर 7 बार परिक्रमा भी कर सकते हैं। ऐसा करने से साधक को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा की प्राप्ति होती है।
सर्वपितृ अमावस्या के दिन आपको तुलसी चालीसा के पाठ व तुलसी माता के मंत्रों का जप करने से लाभ मिल सकता है। इससे साधक को मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद मिलता है।
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
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