क्या दिवाली के दिन खेलना चाहिए जुआ और ताश (सौ.सोशल मीडिया)
Gambling Diwali Tradition: रोशनी और खुशियों का त्योहार दीपावली भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व रखता है। इस त्योहार को लेकर लोगों में बड़ा उत्साह एवं उमंग देखा जाता है। लोग इस दिन अपने घरों में धन और एश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही, दीये भी जलाए जाते हैं।
कहा जाता है कि दिवाली के दिन न केवल दीये जलाए जाते हैं बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक का पर्व भी है।
हालांकि, इस पवित्र पर्व में जुआ यानी ताश के पत्ते खेलने की एक परम्परा सदियों से चली आ रही है और आज भी दीपावली की रात जुआ खेला जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि यह सही है कि गलत। क्या इस दिन ताश और जुआ खेलना चाहिए?
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भारत में प्राचीन काल से ही जुआ खेलने का चलन रहा है। समय के अनुसार, इस खेल ने अपना रूप बदला। पहले जुआ चौसर और चौपड़ के रूप में खेला जाता था, लेकिन अब यह ताश और अन्य तरह से खेला जाता है।
दिवाली के दिन ताश और जुआ खेलने की प्रथा के साथ भगवान शंकर और माता पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को जोड़ा जाता है।
एक कथा के अनुसार, दिवाली के दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने जुआ खेला था। इसमें भगवान शिव को हार का मुंह देखना पड़ा था, तभी से यह परंपरा दिवाली के दिन से जोड़ दी गई है। हालांकि भगवान शिव और माता पार्वती द्वारा जुआ खेलने का कोई ठोस तथ्य किसी ग्रन्थ में नहीं है।
दअरसल, दिवाली के दिन खेले जाने वाले जुए का मुख्य लक्ष्य साल भर भाग्य की परीक्षा होता है। महाभारत काल के समय भी जुआ खेला गया था, जिसमें कौरवों ने पांडवों को छल से हराकर उनका राजपाट छीन लिया था।
भारतीय समाज में जुए को एक सामाजिक बुराई माना जाता है। इसने इंसान तो क्या भगवान को भी कई बार परेशानियों में डाला है। जुआ एक सामाजिक बुराई होकर भी समाज में गहरी पैठ बनाए हुए है।
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आज कानून जुआ खेलने की अनुमति नहीं देता। अतः दिवाली जैसे शुभ दिन पर जुआ खेलने जैसा गलत काम करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। कहा जाता है कि इस दिन जुआ या ताश नहीं खेलना चाहिए। कई बार शगुन का खेल दुर्गुण में बदल जाता है।