ऋषि पंचमी की व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Rishi Panchami 2025: आज यानी 28 अगस्त को ऋषि पंचमी मनाई जा रही है। यह पावन तिथि हर साल भादो महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। सनातन धर्म में ऋषि पंचमी का बड़ा महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा-अर्चना के साथ-साथ व्रत भी किया जाता है। महिलाओं के लिए इस दिन व्रत करने का खास महत्व है।
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस पंचमी का संबंध महिलाओं के पीरियड्स से है। पीरियड्स में धार्मिक कार्यों से जुड़े दोषों से मुक्ति के लिए महिलाएं विशेष रूप से इस व्रत को करती हैं। मान्यता है कि इस दिन पर गंगा स्नान करने से पाप नष्ट होते हैं और सप्तऋषियों का आशीर्वाद मिलता है। व्रत कथा के बिना यह व्रत अधूरा है। ऐसे में चलिए जानते हैं ऋषि पंचमी की व्रत कथा।
आपको बता दें, हर साल यह पर्व गणेश चतुर्थी के अगले दिन मनाया जाता है। इस पर्व के दिन सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है।
इस बार ऋषि पंचमी 28 अगस्त 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। वहीं, अगर पूजन के सुबह मुहूर्त की बात करे तो 28 अगस्त को सुबह 11 बजकर 5 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।
इस व्रत के संबंध में कई कथाएं कही जाती हैं। उनमें से एक भविष्योत्तर पुराण में दी गई कथा है जो संक्षेप में इस प्रकार है। इस पौराणिक कथा के अनुसार विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिनका नाम सुशीला था।
ब्राह्मण दंपत्ति के एक पुत्र और एक पुत्री थी। विवाह योग्य होने पर उन्होंने कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद लड़की विधवा हो गई। तब दुःखी ब्राह्मण दम्पति कन्या समेत गंगा तट पर चले गए और वहीं कुटिया बनाकर रहने लगे।
एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि अचानक उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या की ऐसी स्थिति देख उसकी मां परेशान हो गई और जाकर पति से पूछा कि हे प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?
उत्तंक जी उस समय समाधि में थे। उन्होंने इस घटना का पता लगाकर बताया कि पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। लेकिन इसने रजस्वला होते हुए बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया।
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यदि ये कन्या शुद्ध मन से ऋषि पंचमी का व्रत करे तो इसके सारे दुःख अवश्य दूर हो जाएंगे और इसे अटल सौभाग्य की प्राप्त करेगी। तब पिता की आज्ञा से पुत्री ने ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया जिससे उसके सारे दुख दूर हो गए।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि, मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को संक्रमित माना जाता है। इस दौरान उनके भोजन पकाने या किसी भी धार्मिक गतिविधि में भाग लेने पर रोक होती है। इन दिशा-निर्देशों का पालन न करने से रजस्वला दोष लगता है।
आपको बता दें, ऋषि पंचमी का व्रत नेपाली हिंदुओं में अधिक लोकप्रिय है। इस व्रत के दिन गंगा में स्नान का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से सप्त ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में सप्त ऋषियों के नाम कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम महर्षि, जमदग्नि, वशिष्ठ इन सप्त ऋषियों की आराधना की जाती है।