कार्तिक पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Kartik Purnima Vrat Katha: हिंदुओं के लिए जिस तरह से कार्तिक माह विशेष है, उसी तरह पूर्णिमा का खास महत्व है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा कल 5 नवंबर 2025 को मनाई जा रही हैं। कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और पूजन व्यक्ति के सारे पापों का नाश करता है। सुबह-सुबह गंगा या किसी पवित्र नदी में डुबकी लगाने, मंदिरों में दीप जलाने और भगवान की आराधना करने से आत्मा को शुद्धि और मन को शांति प्राप्त होती है।
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ और भाग्यशाली अवसर माना जाता है। अगर आप अक्षय फल प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस दिन यह विशेष कथा जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए। आइए इस लेख में विस्तार से व्रत कथा के बारे में जानते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध करके सभी देवताओं को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी, लेकिन तारकासुर के वध से उसके तीनों पुत्र तारकक्ष, कमला और विद्युन्माली बेहद दुखी थे और देवताओं के प्रति बेहद आक्रोशित थे। तारकासुर के बेटों ने देवताओं से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की उपासना करना प्रारंभ किया।
उन तीनों ने कठिन से कठिन तप किए और ब्रह्म देव को बेहद प्रसन्न किया और अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मदेव ने कहा कि मैं यह वरदान नहीं दे सकता है, तुम तीनों कोई और वरदान मांगो।
तब तीनों भाइयों ने कहा कि आप हमारे लिए अलग-अलग तीन नगर बना दें। जिसमें वह रहकर पृथ्वी, आकाश सबकुछ भ्रमण कर सकें और जब एक हजार साल बाद जब तीनों भाई मिलें तो तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं। जो देव एक ही बाण से इन तीनों नगर को नष्ट कर देगा। उसके हाथों से हमारी मृत्यु हो जाएगी।
तब ब्रह्मदेव ने उसको वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से तीनों नगरों का निर्माण हुआ। तारकक्ष के लिए सोने, कमला के लिए चांदी और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बना था. उन तीनों भाइयों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।
वहीं, इंद्रदेव ने तीनों भाइयों से भयभीत होकर भगवान शिव के शरण में गए और उनसे मदद के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया। जिसमें चंद्रमा और सूर्य उस रथ के पहिए बनें।
इंद्र, यम, कुबेर और वरूण उस रथ के घोड़े बन गए। हिमालय धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव दिव्य रथ पर सवार होकर उन तीनों राक्षस भाइयों से लड़ने पहुंचें। भगवान शिव और उन तीनों राक्षसों के बीच युद्ध हुआ।
युद्ध के दौरान तीनों भाई एक सीध में आए और फिर भगवान शिव ने उस दिव्य धनुष से बाण चलाकर एक बार में ही तीनों का संहार कर दिया। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही यह घटना हुई थी। इसलिए इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।
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तीनों राक्षस भाइयों का वध होने से सभी देवी-देवता बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। जिसके कारण कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस खुशी में सभी देवी-देवता ने दीए जलाएं थे।