
सावन में शिवलिंग पर इस नियम से चढ़ाएं जल (सौ.सोशल मीडिया)
सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बड़ा ही पावन होता है इस महीने में भगवान शिव की विधि-विधान से सभी पूजा करते है तो तो वहीं पर व्रत परायण का नियम भी होता है। शिवजी की पूजा में पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराने का महत्व होता है। तो वहीं पर गंगाजल अर्पित करने से शिवजी प्रसन्न होते है यह काफी लाभदायक माना जाता है।
कहा जाता है कि, भगवान शिव को गंगा, विशेषकर उत्तरवाहिनी गंगा का गंगाजल अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन पर गंगा के जल से अभिषेक करने का नियम होता है।भगवान शिव की शव, सर्व, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान एवं महादेव सहित 8 मूर्तियों में सर्व मूर्ति जलमयी है। यह सर्व मूर्ति ही सकल चराचर जगत की जीवनदायिनी शक्ति है। वहीं पर यह भी मान्यता है कि, सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक महाविष के ताप से दग्ध नीलकंठ शिव का जलतत्व और जल से लगाव नैसर्गिक होता है इस वजह से सावन का महीना शिवजी को प्रिय है क्योंकि इस मौसम में पानी बरसता रहता है।
पवित्र जल गंगाजल को लेकर एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है जहां पर भगीरथ की घोर तपस्या के बाद स्वर्ग से धरती पर उतर रही गंगा को भगवान शिव ने अपने जटाजूट में लपेट कर सिर पर धारण कर लिया था। इसके बाद से सावन में गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते है तो, शिवभक्त की सभी मनोकामनाएं भगवान शिव पूरी कर देते है और उन्हें शिवधाम की प्राप्ति होती है।
भगवान राम जलाभिषेक करते हुए (सौ.सोशल मीडिया)
सावन महीने के पहले सोमवार के दिन ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए इसके बाद नियम का पालन करते हुए शिव परिवार का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इस दिन केवल एक बार ही भोजन करने का नियम होता है।स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति भगवान शकर के सामने श्रावण मास में दीपदान करता है, वह हजारों वर्ष तक शिवलोक में प्रतिष्ठित रहता है।
घर में आप गंगाजल को स्थान देना चाहते है तो इसके लिए उत्तम स्थान उत्तर-पूर्व दिशा यानि भगवान की दिशा में किसी पवित्र जगह पर रखना चाहिए। इस जल को गंगा गंगा स्नान करने के बाद उसे किसी तांबे अथवा अन्य किसी धातु के बने पात्र में रखकर अपने घर में लाना चाहिए. गंगा जल को इकट्ठा करने के लिए भूलकर प्लास्टिक के पात्र का प्रयोग ना करें और जूठे हाथों से भी इस पवित्र जल को नहीं छूना चाहिए।
यहां पर गंगाजल की बात की जाए तो, सनातन धर्म में गंगाजल का प्रयोग पूजा-पाठ से लेकर तमाम धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों के लिए होता है. पवित्र गंगा जल से न सिर्फ भगवान को भोग लगाया जाता है बल्कि अक्सर इसी गंगाजल को मंदिर में पुजारी चरणामृत के रूप में तुलसी के साथ लोगों को दिया जाता है। कहते हैं अमृत रूपी गंगा जल अक्सर किसी देव-अनुष्ठान एवं मांगलिक कार्य को करते समय संकल्प लेने और शुद्धिकरण के काम आता है, इसका प्रयोग पवित्र होने के लिए किया जाता है। पूजा के दौरान गंगाजल को घर के हर कोने में छिड़का जाता है इसे लेकर मान्यता है कि, ऐसा करने से बुरी शक्तियों का नाश होता है।






