इंद्राक्षी शक्तिपीठ (सौ.डिजाइन फोटो)
Shardiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत में जहां पर कुछ दिन बाकी है वहीं पर इससे पहले ही माता के भक्तों ने तैयारियां शुरु कर दी है। माता दुर्गा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है तो वहीं पर कई मंदिरों और शक्तिपीठों का इतिहास कुछ कहता है। माता के शक्तिपीठ भारत ही नहीं दुनियाभर में मौजूद है जिनका अलग स्थान है। माता दुर्गा के ऐसे शक्तिपीठ की हम बात कर रहे है जहां पर मां सती की पायल गिरी थी औऱ इस स्थान पर भगवान श्रीराम ने भी पूजा की थी। दुनिया के इस कोने में विराजित यह मंदिर कैसा है और इसकी खासियत क्या है चलिए जानते है…
यहां पर बात करें तो, माता दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में शामिल यह खास शक्तिपीठ श्रीलंका में जाफना के नल्लूर में स्थित बताया गया है जहां पर माता सती की पायल गिरी थी इसके बाद इस पवित्र स्थान को माता के खास शक्तिपीठ यानि इन्द्राक्षी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। इस शक्तिपीठ को लेकर यह भी कहा जाता है कि, सती के नुपुर अर्थात घुंघरू श्रीलंका के जाफना में आकर गिरे और इसी स्थान पर इन्द्राक्षी या शंकरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी। इतना ही नहीं यहां की शक्ति को मां इंद्राक्षी, शंकरी और नागापुष्णी अम्मा के नाम से जाना जाता है तथा शिव या भैरव को रक्ष वंश यानी राक्षसों के ईश्वर राक्षसेश्वर या नायंनार कहा जाता है।
बताया जाता है कि, त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने इस शक्तिपीठ में माता दुर्गा की पूजा की थी। वहीं भगवान शिव के भक्त कहे जाने वाले रावण ने भी इस शक्तिपीठ में युद्ध के पहले पूजा की थी। बताया जाता है कि, दुनिया में भी कई जगह पर माता दुर्गा के शक्तिपीठ स्थित है इसमें नेपाल में दो शक्तिपीठ है जिसमें पहला गुह्येश्वरी शक्तिपीठ और दूसरा दंतकाली शक्तिपीठ है. पाकिस्तान में एक हिंगलाज शक्तिपीठ है. बांग्लादेश में चार शक्तिपीठ हैं. सुगंधा शक्तिपीठ, करतोयाघाट शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ, यशोर शक्तिपीठ का नाम सामने आता है।
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यहां पर बताते चलें कि, शक्तिपीठ बनने की पौराणिक कथा भी काफी प्रचलित है इसके बारे में कहा जाता है कि, माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल नाम का स्थान जिसे हरिद्वार के नाम से जाना जाता है वहां एक महायज्ञ किया, उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। माता सती को इसकी जानकारी मिली, पति को यज्ञ में आमंत्रित न करने का जवाब जानने के लिए वो पिता दक्ष के पास पहुंची। माता सती ने अपने पिता से जब यह सवाल किया तो उन्होंने भगवान शिव के लिए अपशब्द कहे उनका अपमान किया।
माता सती अपमान से क्षुब्ध होकर उसी यज्ञ के अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस बात की जानकारी भगवान शिव को लगी तो वे क्रोधित हो उठे और उनका तीसरा नेत्र खुल गया, उन्होंने माता सती का शरीर उठाया और कंधे पर रखा।भगवान शिव का तांडव जारी रहा, उन्होंने कैलाश की ओर रुख किया, पृथ्वी पर बढ़ते प्रलय का खतरा देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खंड करना शुरू कर दिया। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे. ऐसा 51 बार हुआ, इस तरह 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई।