जगन्नाथ मंदिर का रहस्य (सौ.सोशल मीडिया)
भारत के कई प्रसिद्ध मंदिर व धर्म स्थलों का इतिहास रहस्यों व चमत्कारों से भरा हुआ है। इन्हीं में से एक है ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ (Jagannath Rath Yatra 2024) का मंदिर। यह हिंदुओं की आस्था के मुख्य केंद्रों में से एक है। पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का इकलौता मंदिर है, जहां वह अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं।
समुद्र तट पर स्थित ये मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। मान्यता है कि, यहां स्थापित श्रीकृष्ण की काठ (लकड़ी) की मूर्ति में आज भी उनका दिल धड़कता है। इस मंदिर से जुड़े और भी ऐसे कई रहस्य हैं, जो हैरान करने वाले हैं।
1- मान्यता के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां हैं, जो हर 12 वर्षों में बदली जाती है। जब मंदिर की मूर्तियों को बदला जाता है, तब मूर्तियों में से ब्रह्म पदार्थ को निकालकर नई मूर्तियों में लगाया जाता हैं। ब्रह्म पदार्थ को श्रीकृष्ण का हृदय माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों का कहना है कि जब वे भगवान का हृदय नई मूर्तियों में रखते हैं, तब उन्हें अपने हाथों में कुछ उछलता हुआ महसूस होता है।
2- मंदिर के पुजारियों का मानना है कि यह ब्रह्म पदार्थ है, जो अष्टधातु से बना है। लेकिन, यह ब्रह्म पदार्थ जीवित अवस्था में है। इस ब्रह्म पदार्थ को देखने वाला अंधा हो सकता है, या उसकी मृत्यु हो सकती है। इसलिए, ब्रह्म पदार्थ को बदलते वक्त पुजारियों की आंखों पर रेशमी पट्टियां बांध दी जाती है। इसी तरह मंदिर की धूप में कभी भी परछाई नहीं बनती है।
3- जानकारों के मुताबिक, द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया जिसे उनका मानव रूप कहा जाता है। मानव रूप में जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु निश्चित है। इसी प्रकार भगवान कृष्ण की मानव रूपी मृत्यु अपरिहार्य थी। महाभारत की लड़ाई के 36 वर्ष बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया था।
4- जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो उनके शरीर को आग से ढंक दिया। ऐसा कहा जाता है कि उनका हृदय उसके बाद भी धड़क रहा था। अग्नि भी उनके हृदय को नहीं जला पाई। जिसे देख पांडव हैरान रह गए। उसके बाद आकाशवाणी हुई कि ये हृदय तो ब्रह्मा का है। इसे समुद्र में बहा दो और भगवान श्री कृष्ण के हृदय को समुद्र में बहा दिया गया था। लेखिका-सीमा कुमारी