ठाणे कोर्ट (pic credit; social media)
Thane Traffic Policeman Attacked: 13 साल पहले ट्रैफिक पुलिसकर्मी पर हमले के मामले में आखिरकार फैसला आ गया है। ठाणे के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जी. टी. पवार ने सोमवार को आरोपी रघुनाथ नाना बुगे को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने ही गवाहों के विरोधाभासी बयानों के कारण केस साबित करने में नाकाम रहा।
यह मामला वर्ष 2012 का है जब ठाणे के घोडबंदर रोड पर ट्रैफिक हेड कांस्टेबल चंद्रकांत दयानंद बिदाये अपनी ड्यूटी पर थे। उस समय एक ट्रक चालक ने अपने वाहन पर जैमर लगाए जाने का विरोध किया था। इसी दौरान उसने पुलिसकर्मी के साथ मारपीट की और कथित तौर पर हाथ-पैर काटने की धमकी दी थी।
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला), 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया था।
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मामला अदालत में पहुंचा तो सुनवाई करीब 13 साल तक चली। लेकिन फैसला आरोपी के पक्ष में गया। न्यायाधीश पवार ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते।
एक गवाह ने कहा कि आरोपी कार से आया था, जबकि दूसरे ने बताया कि वह क्रेन चालक था और कार को खींचकर ले जा रहा था, तभी विवाद हुआ। अदालत ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी ने किसी भी स्वतंत्र गवाह का बयान दर्ज नहीं किया, जबकि मौके पर कई लोग मौजूद थे।
अदालत ने कहा कि गवाहों के बयान अस्पष्ट हैं और किसी भी तरह से यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने पुलिसकर्मी के साथ दुर्व्यवहार किया या धमकी दी। इसलिए अदालत ने आरोपी रघुनाथ नाना बुगे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
इस फैसले के साथ ही 13 साल से चल रहे इस विवादित केस का पटाक्षेप हो गया है। अदालत के इस निर्णय से यह भी स्पष्ट संदेश गया है कि केवल पुलिस की शिकायत या विरोधाभासी गवाही के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि “न्याय केवल आरोपों पर नहीं, ठोस सबूतों पर होता है।”