सुप्रिया सुले ने किया दौरा (सौजन्य-एक्स)
पुणे: पुणे में गुलियन-बैरे सिंड्रोम के मामले दिनो दिन बढ़ते जा रहे है, जिसको लेकर प्रशासन भी अलर्ट मोड पर आ गया है। गुलियन-बैरे सिंड्रोम के मामले सौ के पार हो चुका है। इस बीच एनसीपी-एससीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी इस मामले में चिंता जाहिर की है।
सुप्रिया सुले ने गुरुवार को सुबह पुणे में सिंहगढ़ रोड पर जीबीएस (गुलियन-बैरे सिंड्रोम) प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने स्थानीय लोगों को पानी की आपूर्ति करने वाले जल स्रोतों का निरीक्षण किया। उन्होंने लोगों से बातचीत भी की और उनकी शिकायतें सुनीं।
महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पुणे और राज्य के अन्य जिलों में जीबीएस के कुल संदिग्ध मामलों की संख्या 127 है, जिनमें से 72 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। इसमें कहा गया है, “आज तक, जीबीएस के 127 संदिग्ध मामलों की पहचान की गई है, जिसमें 2 संदिग्ध मौतें भी शामिल हैं। इनमें से 72 रोगियों में जीबीएस की पुष्टि हुई है। 23 रोगी पुणे नगर निगम से हैं, 73 पीएमसी क्षेत्र में नए जोड़े गए गांवों से हैं, 13 पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम से हैं, 9 पुणे ग्रामीण से हैं और 9 अन्य जिलों से हैं। प्रभावित व्यक्तियों में से 20 वर्तमान में वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं।”
मंगलवार को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने कहा कि मामलों की जांच चल रही है और विशेषज्ञों की एक टीम ने विभिन्न नमूने एकत्र किए हैं। डॉ. बहल ने कहा, “एनआईवी पुणे लैब में संक्रमित लोगों के मल और रक्त के नमूनों की जांच की जा रही है, लेकिन अभी तक इसके फैलने के पीछे के कारण के बारे में कोई निश्चित सुराग नहीं मिल पाया है।”
उन्होंने कहा कि जीबीएस का कारण या लिंक केवल 40 प्रतिशत मामलों में ही पाया जाता है। पुणे में 21 जीबीएस रोगियों से एकत्र किए गए 4 मल के नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनम बैक्टीरिया पाया गया, जिसका परीक्षण पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) द्वारा किया गया, जबकि कुछ में नोरोवायरस पाया गया।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शहर में गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के संदिग्ध और पुष्ट मामलों में हो रही बढ़ोतरी को नियंत्रित करने और हस्तक्षेप करने में राज्य अधिकारियों की सहायता के लिए पुणे में एक टॉप लेवल की मल्टी स्पेशलिस्ट टीम की प्रतिनियुक्ति की है।
महाराष्ट्र भेजी गई केंद्रीय टीम में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) दिल्ली, निमहंस बेंगलुरु, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के क्षेत्रीय कार्यालय और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे के सात विशेषज्ञ शामिल हैं। एनआईवी, पुणे के तीन विशेषज्ञ पहले से ही स्थानीय अधिकारियों की सहायता कर रहे थे।
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टीम राज्य के स्वास्थ्य विभागों के साथ मिलकर काम कर रही है और आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की सिफारिश करने के लिए जमीनी स्थिति का जायजा ले रही है। केंद्रीय टीम को स्थिति की निगरानी करने और राज्य के साथ समन्वय करने का काम सौंपा गया है।
शहर के विभिन्न भागों से पानी के नमूने रासायनिक और जैविक विश्लेषण के लिए जन स्वास्थ्य प्रयोगशाला में भेजे गए हैं। जीबीएस से हाथ या पैर में अचानक कमजोरी/लकवा हो सकता है। लोगों को चलने में परेशानी हो सकती है या अचानक कमजोरी और दस्त (लगातार अवधि के लिए) हो सकते हैं।
नागरिकों को पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जैसे कि उबला हुआ पानी पीना, भोजन ताजा और साफ होना चाहिए। पके और बिना पके खाद्य पदार्थों को एक साथ न रखकर भी संक्रमण से बचा जा सकता है।
रोग की प्रगति के बारे में बताते हुए, फोर्टिस अस्पताल में न्यूरोलॉजी के प्रमुख निदेशक और प्रमुख डॉ. प्रवीण गुप्ता ने कहा, “जीबीएस तब होता है जब कैंपिलोबैक्टर जेजुनी या श्वसन संक्रमण जैसे जीवाणु या वायरल संक्रमण से लड़ने के लिए बनाए गए एंटीबॉडी परिधीय तंत्रिकाओं के साथ क्रॉस-रिएक्ट करते हैं। इससे पैरों में शुरू होने वाला आरोही पक्षाघात होता है और ऊपर की ओर बढ़ता है। गंभीर मामलों में, रोगी वक्ष की मांसपेशियों की कमजोरी के कारण सांस लेने की क्षमता खो सकते हैं और उन्हें वेंटिलेटरी सपोर्ट की आवश्यकता होती है।” (एजेंसी इनपुट के साथ)