HAL की धीमी रफ्तार पर वायुसेना नाराज, तेजस की डिलीवरी अटकी, कब मिलेगी पहली खेप?
Nashik News: भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के असंतुलन को दूर करने के लिए, सेवानिवृत्त होने वाले अधिकांश विमानों की जगह स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस को दी जानी है, लेकिन तेजस MK-1A लड़ाकू विमानों के उत्पादन में लगभग पौने दो साल की देरी ने वायुसेना की चिंता बढ़ा दी है।
तेजस की आपूर्ति फरवरी 2024 से शुरू होने की उम्मीद थी, लेकिन इसमें हुई देरी के कारण वायुसेना एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। निर्धारित समय-सारणी के अनुसार आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वायुसेना को आक्रामक रुख अपनाना पड़ा है। शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में एचएएल की नाशिक परियोजना में निर्मित पहले हल्के तेजस MK-1A लड़ाकू विमान का उड़ान प्रदर्शन (रोल-आउट) होगा। इसके साथ ही बेंगलुरु की तरह नाशिक परियोजना में भी तेजस के उत्पादन की शुरुआत हो जाएगी।
भारतीय वायुसेना के लिए कुल 42 लड़ाकू स्क्वाड्रनों (तुकड़ियों) की स्वीकृति है। हाल ही में मिग-21 के दो स्क्वाड्रन सेवानिवृत्त हुए हैं, जिससे यह संख्या घटकर केवल 29 सक्रिय स्क्वाड्रनों पर आ गई है। स्वीकृत संख्या की तुलना में यह पिछले छह दशकों में सबसे कम मानी जाती है। मिग-21 के बाद मिग-29, जगुआर और मिराज-2000 जैसे विमान भी जल्द ही सेवानिवृत्ति के कगार पर होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि उत्पादन में यह अंतराल वायुसेना की लड़ाकू क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
वायुसेना ने प्रारंभिक चरण में एचएएल को तेजस MK-1A के 83 विमानों का ऑर्डर दिया है, जिसकी कुल लागत लगभग 48,000 करोड़ रुपये है। इन विमानों में लगभग 75% स्वदेशी सामग्री का उपयोग होता है, लेकिन उनके इंजन — GE F404 — अमेरिकी कंपनी GE Aerospace से तकनीक हस्तांतरण के माध्यम से भारत में तैयार किए जाने हैं।
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इंजन की आपूर्ति में हुई देरी के कारण उत्पादन शेड्यूल पर असर पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में कंपनी को हर साल 16 इंजन आपूर्ति करने थे, लेकिन आवश्यकतानुसार आपूर्ति न होने से एचएएल को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस देरी को लेकर वायुसेना प्रमुख ने एचएएल की कार्यप्रणाली पर नाराज़गी भी व्यक्त की थी। एचएएल ने अब अगले तीन महीनों में तेजस MK-1A की पहली खेप (स्क्वाड्रन) वायुसेना को सौंपने की योजना बनाई है।