नागपुर : हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ समान अधिकार की बात की जा रही है। सभी शासकीय सेवाओं में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है लेकिन पुलिस विभाग में यह आरक्षण एक तरह से बोझ बनता जा रहा है। विशेष तौर पर राज्य के कारागृह विभाग में महिला कर्मचारियों की संख्या बढ़ने से अब पुरुष कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ गया है. राज्य की जेलों में हो रही भर्ती में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण है। जेलों में महिला कर्मचारियों की संख्या पुरुषों की तुलना में 10 प्रश भी नहीं है. ऐसे में महिला कर्मचारियों की संख्या ज्यादा होती जा रही है। वहीं पुरुष कैदियों की संख्या ज्यादा होने से पुरुष अधिकारी और कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है।
पिछले दिनों भंडारा जेल में कार्यरत एक कर्मचारी ने एडीजी जेल प्रशांत बुरडे को एक पत्र लिखा. यह पत्र सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है।जेल रक्षक ने अपने पत्र में बताया कि भंडारा जेल में कर्मचारियों की कुल संख्या 60 है। इसमें महिला सिपाहियों की संख्या 24 है. इस जेल में पुरुष कैदियों की कुल संख्या 450 से अधिक है जबकि पुरुष कर्मचारियों की संख्या 36 है। इसमें 9 पद रिक्त हैं और 9 पद कार्यालयीन कामों के लिए हैं. वहीं भंडारा जेल में महिला कैदियों की संख्या केवल 5 है। मसलन एक महिला कैदी के पीछे 5 महिला कर्मचारी काम कर रही हैं। वहीं 1 पुरुष कर्मचारी पर 18 पुरुष कैदियों की जिम्मेदारी है. ऐसे में पुरुष कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ता ही जा रहा है. उनकी तुलना में महिला कर्मचारियों को काम नहीं है।
नागपुर सेंट्रल जेल में सिपाही के कुल 281 पद मंजूर हैं. इसमें से 146 पद रिक्त हैं. पुरुष सिपाहियों की संख्या 80 है और महिला सिपाहियों की संख्या 58 के करीब है। यहां भी कैदियों की संख्या पर नजर डालें तो 2800 के करीब हैं। वहीं महिला कैदियों की संख्या 116 है। उस हिसाब से एक पुरुष कर्मचारी पर 35 कैदियों की जिम्मेदारी है। वहीं महिला कर्मचारी पर महज 2 कैदियों की जिम्मेदारी है। इससे समझा जा सकता है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष कर्मचारियों पर काम का बोझ काफी ज्यादा है। एक कर्मचारी ने बताया कि जब महिला कर्मचारियों को समान तनख्वाह और अधिकार दिए जा रहे हैं तो उनसे काम भी पुरुषों के समान ही लिया जाना चाहिए।
राज्य की सभी जेलों में यही हाल है। हत्या, डकैती, लूट, दुष्कर्म, आतंकी और माओवादी गतिविधियों में आरोपियों को सेंट्रल जेल में कैद किया जाता है जिसमें महिला आरोपियों की संख्या 10 प्रश से भी कम होती है। पुरुष कैदियों की संख्या काफी ज्यादा होती है। उन्हें अंडा सेल से लेकर अलग-अलग बैरेक में पेशेवर और खूंखार अपराधियों से जूझना पड़ता है। पुरुषों की बैरेक में महिला कर्मचारियों की तैनाती नहीं की जा सकती। उन्हें केवल महिला बैरेक में ही ड्यूटी दी जाती है या फिर कार्यालयीन काम करवाया जाता है। ज्यादातर महिलाओं की ड्यूटी कम्प्यूटर सेक्शन में ही होती है।
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जेल में कोई भी अप्रिय घटना होने पर पुरुष कर्मचारियों को ही कसूरवार ठहराया जाता है जबकि उन पर काम का बोझ अधिक है। पुरुष अधिकारी-कर्मचारी काम करके भी उपेक्षित महसूस करते हैं. उनके खिलाफ चल रही जांच महीनों तक प्रलंबित रहती है, जिससे प्रमोशन भी देरी से होता है। वहीं महिला कर्मचारी कार्यालयीन ड्यूटी में होने के कारण उन्हें रिवार्ड पर रिवार्ड मिलते हैं। कभी उनकी सर्विस शीट में कोई सजा या निगेटिव रिमार्क नहीं होता। ऐसे में उन्हें प्रमोशन भी जल्दी मिल जाता है।
इस समस्या से जेल के आला अधिकारी भी परेशान हैं लेकिन सरकार की नीति पर कौन सवाल उठा सकता है। अधिकारियों का भी कहना है कि जेल की सुरक्षा में पुरुष अधिकारी और कर्मचारियों की आवश्यकता ज्यादा है लेकिन कैदियों की संख्या के हिसाब से उनकी भर्ती कम है. वहीं आरक्षण होने के कारण महिला कर्मचारी सेवा में तो आ रही हैं लेकिन उनसे संवेदनशील बैरेक में काम नहीं करवाया जा सकता। महिलाओं को प्रसुति और बाल संगोपन अवकाश सहित कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। ज्यादातर महिला कर्मचारी छुट्टी पर रहती है। वहीं पुरुष कर्मचारियों को छुट्टी देने में भी दिक्कत होती है। अन्य विभागों में महिलाओं का आरक्षण सही है लेकिन जेल जैसे संवेदनशील विभाग में महिला कर्मचारी बोझ बनती जा रही हैं। जेल विभाग की नियमावली में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि महिला कर्मचारियों की ड्यूटी पुरुष कैदियों के यार्ड में नहीं लगाई जा सकती लेकिन सुरक्षा और भीतर के वातावरण के हिसाब से उन्हें पुरुष यार्ड में ड्यूटी देना संभव नहीं है। इससे पुरुष अधिकारियों और कर्मचारियों के मन में असंतोष का निर्माण हो रहा है।
–अभिषेक तिवारी की रिपोर्ट