कुर्की आदेश पर रोक लगाने से इनकार (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Petition Reject: CERSAI के साथ 21 जुलाई 2023 को पंजीकृत वर्ष 2018 के 1/34 के सम्पत्ति कुर्की आदेश तथा MSGST उपायुक्त द्वारा सिटी सर्वे कार्यालय-3 के साथ 14 जनवरी 2023 के परिवर्तित कुर्की आदेश खारिज करने की मांग को लेकर सुपर्ब हाईजेनिक डिस्पोजल द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस पर दोनों पक्षों की दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने कुर्की आदेश रद्द करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी। विशेष: रूप से याचिकाकर्ता ने याचिका के साथ संलग्न (अनेक्श्चर P-3) में दर्शाए गए 21 जुलाई 2023 के आदेश को रद्द करने की मांग भी की।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने आदेश में कहा कि अनेक्श्चर P-3 (प्रमाणिक दस्तावेज) का अवलोकन किया है। जिसमें यह पाया गया कि यह कुर्की का आदेश नहीं बल्कि रामकृष्ण गोविंद पोद्दार और याचिकाकर्ता के बीच निष्पादित विक्रय-पत्र के संबंध में उपपंजीयक कार्यालय द्वारा जारी किया गया चालान है।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि इस स्तर पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया है कि न्यायालय जो पढ़ रहा है, वह अनुलग्नक P-3 नहीं बल्कि अनुलग्नक P-4 है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि दस्तावेजों को स्कैन करते समय अनुलग्नक P-4 को अनुलग्नक P-3 के रूप में चिह्नित किया गया है और इसलिए कोर्ट ने उक्त तथ्य पर ध्यान दिया है, अत: यह कैसे हो गया, इसे लेकर कोर्ट ने मामले की जांच करने का आदेश रजिस्ट्रार (न्यायिक) को दिया। साथ ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का भी आदेश दिया।
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कोर्ट द्वारा 25 मार्च 2025 को दिए आदेश में स्पष्ट किया था कि पंकज अग्रवाल (मेहदिया) को राज्य कर उपायुक्त द्वारा 6 फरवरी 2018 को अचल संपत्ति की कुर्की का आदेश जारी किया गया जिसमें काचीमेट स्थित चिखली शकरी गृह निर्माण संस्था के प्लॉट नंबर 86 और 95 तथा दाभा स्थित वायु सेनानगर के पीछे आउटर रिंग रोड का एक प्लॉट शामिल था। कुर्की के दिन तक 26,90,622 रुपए का बकाया था। साझेदारी फर्म ने कथित तौर पर उपरोक्त संपत्ति हासिल करने के लिए 19 दिसंबर 2022 को आरजी पोद्दार को 3.44 करोड़ रुपये का वित्त प्रदान किया। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने आरजी पोद्दार से 4 नवंबर 2023 को पंजाब नेशनल बैंक द्वारा आयोजित ई-नीलामी में 10 जनवरी 2023 को संपत्ति खरीदी है।
याचिकाकर्ता ने उक्त संपत्ति खरीदने के लिए आईडीबीआई बैंक से कर्ज प्राप्त किया। चूंकि नीलामी में खरीदी के दौरान बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया था, अत: राज्य कर विभाग ने 14 जनवरी 2023 को इसका बोझ याचिकाकर्ता पर लाद दिया। याचिकाकर्ता का मानना था कि बकाया का दायित्व डिफॉल्टर पर लगाया जाना चाहिए न कि याचिकाकर्ता पर जो बिना सूचना के संपत्ति का खरीदार है।