प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स:सोशल मीडिया)
Nagpur Winter Session News: नागपुर हमेशा ही आरोप लगते रहे हैं कि करोड़ों रुपये खर्च कर मुंबईया सरकार उपराजधानी नागपुर में शीत सत्र के दौरान पिकनिक मनाने आती है। इस बार तो सिर्फएक सप्ताह का ही सत्र होने वाला है।
इसे विदर्भ की जनता के साथ घोर मजाक बताया जा रहा है। हर वर्ष शीत सत्र के लिए 100-200 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। इस बार भी अकेले पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा विधानभवन, रविभवन, नागभवन, विधायक निवास सहित विविध भवनों, सड़कों की मरम्मतआदि कार्यों के लिए 100 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
अन्य विभागों स्वास्थ्य, बिजली आदि के खर्च अलग से हैं। वाहनों की व्यवस्था से लेकर मंत्री-संतरियों की विविध व्यवस्थाओं के लिए, मुंबई सेपूरे अमले के आने-जाने, भोजन आदि के खर्च पर भी लगभग 50 करोड़ खर्च होना अपेक्षित है।
7 दिनों के इस सत्र में एक दिन का खर्च 20 करोड़ रुपयों से अधिक बताया जा रहा है। अनेकों का कहना है कि इससे तो अच्छा होता उपराजधानी में सत्र ही आयोजित नहीं किया जाता। मुंबई में ही औपचारिकता पूरी कर ली जाती तो इतने करोड़ों रुपयों की फिजूलखर्ची तो बच जाती। यहां तो 20 करोड़ रुपयों का 1 दिन का सत्र पड़ रहा है।
करोड़ों रुपये खर्च कर विधायक निवास, रविभवन, नागभवन, हैदराबाद हाउस, 160 खोली, विधानभवन, विधानपरिषद भवन को चकाचक करने का काम किया गया है। नये फर्नीचर, रंगरोगन, सड़कों को चकाचक किया गया है लेकिन इन सारे परिसरों का उपयोग साल के 365 दिनों से महज 7 दिन होने वाला है।
शेष 358 दिन फिर अधिकतर समय इन परिसरों व इमारतों का कोई उपयोग ही नहीं होता। जितने हिस्से उपयोग में रहते हैं वही मेन्टेन रखे जाते हैं और बाकी को फिर आगामी शीत सत्र तक के लिए लावारिस छोड़ दिया जाता है। अब तो विस भवन विस्तार कार्य के चलते आगामी 2 वर्षों तक यहां सत्र भी नहीं होने की संभावना अधिक है।
ये खर्च तो सरकारी खर्च है लेकिन यहां आने वाले मंत्रियों, मंत्रालयीन अधिकारियों व कर्मचारियों के नाज-नखरों का ‘भार’ यहां के स्थानीय विभागों के अधिकारियों पर अलग से पड़ता है। अभी से अपने ‘सरकार’ के नखरे उनके मताहत अधिकारी व कर्मचारी स्थानीय अधिकारियों को बताने लगे हैं।
किसी ने हिदायद दी है कि हमारे ‘सरकार’ को सिर्फ देशी मुर्गा व बिसलरी वाटर ही चलता है, इसका ध्यान रखना, अपने ‘सरकार’ की आड़ में मुंबईया कर्मचारी केतली से गरम चल रहे हैं। वे अपनी सेवाएं भी गिना रहे हैं।
किसी को खास ब्रांड का ही ‘रंगीन पानी’ चाहिए तो किसी ने सत्र समाप्ति के तुरंत बाद का अपना पिकनिक प्लान भी आयोजित करने की मांग रखी हुई है। इन खचर्चों का ‘भार’ भी हल्का नहीं होता है। अधिकारी अपने मातहतों या फिर संबंधित ठेकेदारों से इसकी व्यवस्था करने को मजबूर हो रहे हैं।