
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी (सोर्स: सोशल मीडिया)
Nagpur University News: राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी में हाल ही में नियुक्त नई एजेंसी के कामकाज को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन नई कंपनी की लगातार हो रही चूकों और अक्षमताओं को छिपाने के लिए हर समस्या का दोष पुरानी एजेंसी पर मढ़ रहा है। स्थिति यह बन गई है कि नई कंपनी से होने वाली प्रत्येक गलती को पुरानी कंपनी द्वारा डेटा न दिए जाने का बहाना बनाकर दबाया जा रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अंतर्गत बीए, बीकॉम, बीएससी सहित तृतीय सेमेस्टर की परीक्षाएं पहली बार आयोजित की जा रही हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि इन परीक्षाओं के लिए किसी भी प्रकार का पुराना (बैक) डेटा उपलब्ध ही नहीं है क्योंकि सभी विद्यार्थी नियमित छात्र हैं। इसके बावजूद 22 दिसंबर से प्रारंभ होने वाली परीक्षाओं के लिए नई कंपनी समय पर और सही प्रवेश पत्र तैयार करने में पूरी तरह विफल रही। अधिकांश छात्रों के प्रवेश पत्रों में केवल 3 विषय ही दर्शाए गए, जबकि वास्तविकता में विषय अधिक हैं।
हैरानी की बात यह है कि नागपुर विश्वविद्यालय ने इस गंभीर चूक की जिम्मेदारी लेने की बजाय पूरा दोष पुरानी कंपनी पर डाल दिया, जबकि यह परीक्षा पहली बार आयोजित हो रही है और इसमें पुराने डेटा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
सूत्रों के अनुसार, नई कंपनी अब तक परीक्षा शुल्क से संबंधित मॉड्यूल विकसित नहीं कर पाई है। परिणामस्वरूप 22 दिसंबर से शुरू हो रहीं नियमित परीक्षाओं के लिए कॉलेजों द्वारा परीक्षा शुल्क ही जमा नहीं किया जा सका। यह समस्या पूरी तरह तकनीकी और वर्तमान व्यवस्था से जुड़ी है जिसका पुराने डेटा से कोई लेना-देना नहीं है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बार फिर पुरानी कंपनी के डेटा को जिम्मेदार ठहराया। नई कंपनी को बचाने के लिए विश्वविद्यालय ने बिना परीक्षा शुल्क लिए ही छात्रों के प्रवेश पत्र जारी कर दिए जो व्यवस्था और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
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विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा नई कंपनी को असाधारण संरक्षण दिए जाने के पीछे कारण भी सामने आ रहे हैं। आरोप है कि राजनीतिक प्रभाव के चलते इस कंपनी की नियुक्ति की गई जिसका पूर्व रिकॉर्ड विवादित रहा है। बताया जा रहा है कि निविदा की शर्तों को इस कंपनी के पक्ष में ढालने के लिए टर्नओवर बढ़ाया गया और अन्य आवश्यक मानदंडों को कम कर दिया गया, ताकि चयन सुनिश्चित किया जा सके।
शैक्षणिक विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व-परीक्षा स्तर पर इस प्रकार की अव्यवस्थाएं आगे चलकर परिणामों में देरी और त्रुटियों का कारण बनेंगी। विश्वविद्यालय प्रशासन की यह लापरवाही सीधे तौर पर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ के समान है। कुल मिलाकर विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली नई कंपनी की अक्षमता और प्रशासन द्वारा जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति ने पूरे परीक्षा तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।






